आत्मनिरीक्षण
आत्मनिरीक्षण कितने प्रकार के हैं ?
आत्मनिरीक्षण में हम अपने द्वारा शारीरिक, मानसिक और वाचिक स्तर पर की गई क्रियाओं का चिंतन करते हैं। अपने शरीर के कर्मों का निरीक्षण, अपनी वाणी के कर्मों का निरीक्षण और अपने मन के कर्मों का निरीक्षण ये तीन प्रकार के आत्म निरीक्षण होते हैं।
(1) शारीरिक आत्मनिरीक्षण:
इसमें हम अपनी दैनिक शारीरिक क्रियाओं का चिंतन करते हैं। शरीर को स्वस्थ रखने की दिनचर्या, व्यायाम, प्राणायाम, स्नान, उपासना, भोजन, यम-नियम का पालन, परोपकार आदि विषयों का अवलोकन करते हैं।
(2) वाचनिक आत्मनिरीक्षण:
*इसका अर्थ है अपनी वाणी की क्रियाओं को देखना कि आज मैंने क्या-क्या बोला। सत्य का पालन किया या नहीं, कठोर बोला या प्रिय बोला, उचित बोला या अनुचित, कम बोला या अधिक, वाणी द्वारा कोई पाप तो नहीं किया, वाणी के नियमों का पालन किया / नहीं किया आदि।
(3) मानसिक आत्मनिरीक्षण:
इसमें हम अपने मन की क्रियाओं को देखते हैं। आज सकारात्मक सोचा या नकारात्मक, अच्छा सोचा या बुरा, काम, क्रोध, लोभ, मोह, राग, द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार पर संयम रखा या नहीं। साभार
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