आइये जानिए क्यों मनाते है 17 सितम्बर
-मूल लेखक धीमान कुलश्रेष्ठ स्व0 श्री १0८ स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज
आइये जानिए क्यों मनाते है 17 सितम्बर विश्वकर्मा पूजन दिवस
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज अखिल भारतीय धीमान ब्राह्मण महासभा के मसिक पत्र अक्टूबर सन् 1943 ई0 के धीमान ब्राह्मण अंक में लिखते हैं कि यह प्रश्न मेरे सामने सन् 1935 ई॰ में भी एक बार पहले आ चुका है कि 17 सितम्बर कन्या संक्रान्ति को जो भारत वर्ष में प्रति वर्ष महर्षि विश्वकर्मा जी का पूजन दिवस मनाया जाता है उसका क्या अभिप्राय है?
Kyon manate hai 17 September
उत्तर में कहा जा सकता है कि यह शिल्पी लोगों का एक सामूहिक दिवस है। जिसे शिल्प के प्रवत्र्तक महर्षि विश्वकर्मा जी का पूजन दिवस कहा है। क्योंकि शिल्प के प्रवत्र्तक महर्षि विश्वकर्मा जी को वेदों में जगद्गुरु के नाम से पुकारा है जिनका पूजन 17 सितम्बर कन्या संक्रान्ति को प्रायः कारखानों, फैक्ट्रियों तथा मिलों में उनका आह्वान कर पूजन-दिवस मनाया जाता है।
हमारा देश कृषि प्रधान, और शिल्पी लोगों का देश है, शिल्पी लोगों से ही कृषि, कला-कौशल का कार्य होकर ही देश का उत्थान होता है। इसीलिए शिल्पी लोग पूजनीय हैं। इसीलिए शिल्पियों के द्वारा विश्वकर्मा जी का पूजन दिवस मनाया जाता है। किन्तु आज के परिवेश में श्रमिक दिवस कहा जाने लगा है, जो कि अनुचित है।
विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर क्यों मनाया जाता है
17 सितम्बर केवल विश्वकर्मा पूजन दिवस ही है। हां इस दिवस को कोई भी विश्वकर्मा जी की पूजा करे वह शत-प्रतिशत उचित ही कहा जायेगा।
प्रश्नः-17 सितम्बर कन्या की संक्रान्ति को ही विश्वकर्मा जी का पूजन दिवस क्यों मनाया जाये? संक्रान्ति तो और भी हैं जैसे मेष, वृष, मिथुन, कर्क आदि, इनमें क्यों नहीं मनाते?
विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर क्यों मनाया जाता है
उत्तरः- विश्वकर्मा जी का पूजन हर दिवस प्रत्येक धार्मिक कार्य में होना अथवा किया जाना आवश्यक हैं। किन्तु अन्य संक्रान्ति की अपेक्षा कन्या संक्रान्ति को मुख्य माना जाता है, क्योंकि यह वातयुक्ति युक्त है तथा प्रमाणों और तर्क के आधार पर शरद ऋतु से सृष्टि की रचना प्रारम्भ हुई। प्रलय के समय जब पंच भूत अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी तथा आकाश आदि परमेश्वर में लीन हो जाते हैं और सूर्य का प्रकाश भी समाप्त हो जाता है, तब जगत् शरद ठंडा होकर प्रलय को प्राप्त होता है। उसी शरद में परमेश्वर फिर से सृष्टि की रचना करता है। वेद मंत्र भी यही कहता है जिसकी हम नित्य प्रति संन्ध्या में प्रातः सायं पाठ करते हैं।
ओं-तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदःशतं जीवेम शरदः शतशृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम,
शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्।।(यजुर्वेद अ॰ ३६, मं॰२४)
अर्थ-तच्चक्षुर्देवहितं जो ब्रह्म सबका द्रष्टा, धार्मिक विद्वानों का परम हितकारक तथा (पुरस्ताच्छुकमुच्चरत्) सृष्टि के पूर्व, पश्चात और मध्म में सत्य स्वरूप से वर्तमान रहता और सब जगत् का उत्पन्न करने वाला है। (पश्येम शरदः शतम्) उसी ब्रह्म को हम लोग सौ वर्ष पर्यन्त देखें। (जीवेम शरदः शतम्) और जीवें (श्रृणुयाम शरदः शतम) सौ वर्ष तक सुने (प्रब्रवाम शरदः) और उसी ब्रह्म का उपदेश करें (शतमदीनाः स्याम शरदः शतम्) तथा उसकी कृपा से किसी के अधीन न रहें (भूयश्च शरदः शतात) उसी परमेश्वर की आज्ञा पालन और कृपा से सौ वर्षों के उपरान्त भी जीवें, सुनें, सुनावें और स्वतन्त्र रहे अर्थात आरोग्य शरीर, दृढ़ इन्द्रिय, शुद्ध मन और आनन्द सहित हमारी आत्मा सदा रहें । परमानन्द को प्राप्त करें।
विश्वकर्मा दिवस क्यों मनाया जाता है?
प्रश्नः-क्या मनुष्य शरद ऋतु को ही देखें और सुनें, ग्रीष्म व वर्षाऋतु को न देखें और न सुनें?
उत्तरः- उत्तर यही है कि अवश्य देखें और सुनें क्योंकि मनुष्य का पहले मुख ही देखा जाता है। उसके अंग प्रत्यंग को बाद में ही देखते हैं। इसीलिए वेद मंत्र के अनुसार शरदऋतु को मुख माना गया है।
विश्वकर्मा पूजा के पीछे क्या कहानी है?
प्रलय के पश्चात परमेश्वर शीत में ही सृष्टि की फिर से रचना करता है और वह ऋतु शरद ऋतु कहलाती है। सूर्य का प्रकाश होने से जगत में गर्मी उत्पन्न होती है, उसे ग्रीष्म ऋतु कहते है। उस ग्रीष्मऋतु से जल की भाप से (ज्वार भाटा बनकर) वर्षा होकर वर्षा ऋतु कहलाती है। यह क्रम सदा से चल रहा है, व सदा चलता रहेगा। वेद मंत्रों के आधार पर अन्य संक्रान्तियों की अपेक्षा कन्या की संक्रान्ति को श्रेष्ठ माना है।
विश्वकर्मा पूजा का रहस्य क्या है?
सृष्टियारम्भ नववर्ष का स्वागत करते हुए शिल्प के प्रवत्र्तक आदि विश्वकर्मा जी का आह्वान् पूजन दिवस के रुप में 17 सितम्बर (कन्या संक्रान्ति) को प्राचीन काल से मनाते चले आ रहें हैं। इस प्रकार कन्या संक्रांति सृष्टि सृजन दिवस के रुप में भी मनाना उचित ही होगा।
विश्वकर्मा जयन्ती नहीं विश्वकर्मा पूजन दिवस अथवा सृष्टि सृजन दिवस मनाया जाए
दुःख का विषय है कि बहुत से लोगों तथा संस्थाओं द्वारा १७ सितम्बर को विश्वकर्मा पूजन दिवस के स्थान पर विश्वकर्मा जयन्ती लिख दिया जाता है। जो एक अज्ञानता का ही परिचायक है।
कन्या की संक्रान्ति शिल्प के प्रवत्र्तक आदि विश्वकर्मा जी का केवल और केवल विश्वकर्मा पूजा दिवस है, सृष्टि सृजन दिवस है। इसी दिन सर्वप्रथम देवताओं ने विश्वकर्मा जी की पूजा की थी।
विश्वकर्मा दिवस क्यों मनाया जाता है?
क्या है 17 सितम्बर?
मूल रूप कन्या सक्रांति ही है जो आदि काल से है 17 सितम्बर बहुत बाद में प्रचलित हुआ। इस आधार पर हम यह प्रमाणिकता से कह सकते हैं कि कन्या संक्रान्ति आदि काल से ही विश्वकर्मा पूजन दिवस रहा है। कुछ लोग जो यह कहते हैं कि हावड़ा ब्रिज के बनने पर सर्वप्रथम अंगेजों ने विश्वकर्मा पूजा की थी, यह प्रमाणिक नहीं हो सकती। हां यह अवश्य माना जा सकता है कि कन्या संक्रान्ति को ही अंग्रेजों ने विश्वकर्मा पूजा की हो, और १७ सितम्बर नाम दिया गया हो। क्योंकि कन्या संक्रान्ति १७ सितम्बर के आसपास ही प्रतिवर्ष पड़ती है। इस प्रकार कन्या संक्रान्ति को १७ सितम्बर विश्वकर्मा पूजन दिवस प्रतिवर्ष सभी शिल्पियों तथा सभी तकनिकी संस्थानों व तकनिकी लोगों, इंजीनियरों, कारखानों आदि में प्रतिवर्ष महा पूजा का आयोजन होता है। यह पूजा पहले बिहार, पश्चिम बंगाल, आसाम और उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों में मनायी जाती रही है। जबकि आज पूरे देश विदेश में मनायी जाने लगी है।
KYA PARMAtMA BHI VISHWAKARMA HAI
यो विश्वं सर्वकर्म क्रियामाणस्य स विश्वकर्मा:
अर्थात- जो एकमात्र ब्रह्म परमात्मा समस्त संसार की उत्पत्ति से लेकर प्रलय के साथ समस्त कर्म करने की योग्यता रखता है उस परमेश्वर को विश्वकर्मा कहा जाता है।
एक विशेष अनुरोध सभी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण केवल विश्वकर्मा पूजन दिवस/सृष्टि सृजन दिवस का ही प्रचार करें। इस दिन 10 विश्वकर्माओं में से किसी भी विश्वकर्मा की जयंती नही होती है। यह पूजा विशेष रूप से महर्षि त्वष्टा विश्वकर्मा को ही समर्पित है। क्योंकि आदि त्वष्टा विश्वकर्मा जिन्हें आदि ब्रह्मा भी कहते हैं। सर्वप्रथम सभी देवताओं ने ही उनकी कन्या सक्रांति को ही आराधना की थी। अतः आप सबसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि कोई भी संस्था / अध्य्क्ष/ नेताजी आदि जयंती का प्रचार न करें । धन्यवाद
-संकलन व पुनर्लेखन-केदारनाथ धीमान
-साभार महर्षि विश्वकर्मा
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