'अपनी तो हर सुबह होली ..... अपनी तो हर शाम दिवाली'
उत्सव और उत्साह दोनों ही शब्द ' उत ' उपसर्ग से बने हैं। दोनों में गहरा संबंध है। जब उत्सव होता है तो उत्साह होता है। जब उत्साह होता है तो शरीर में स्फूर्ति स्वतः उत्पन्न हो जाती है। जो बच्चे बार-बार उठाने पर भी नहीं उठते वह त्योहार वाले दिन हल्की सी आवाज़ से भी उठ कर बैठ जाते हैं। क्योंकि मन में उत्साह होता है। होली पर उत्साह कि कैसे एक दूसरे को रंग से रंगेंगे और दीपावली पर उत्साह कि कैसे घर को सजाएंगे , किस प्रकार से स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेंगे और रंग-बिरंगे पटाखे - फुलझड़ियां छुड़ाएंगे। बीमार लोग भी अपनी बीमारी को भूल कर उत्सव में उत्साह से शामिल हो जाते हैं।
इसके विपरीत भी संभव है। यदि जीवन में उत्साह हो तो उत्सव का अनुभव होता है। फिर रोज़ सुबह जल्दी उठने का मन करता है। मन में उत्साह हो कैसे संभव है ?
यदि मन में उत्साह होगा हम कभी अस्वस्थ नहीं होंगे। अस्वस्थ होने का अर्थ है जीवन में उत्साह का अभाव। यदि आपके पास फुर्सत नहीं है अस्वस्थ होने की तो किसी बाहरी बीमारी के बावजूद आप स्वस्थ रहना चाहेंगे , रोग से मुक्ति के लिए संघर्ष तेज़ होगा और जल्दी ही स्वस्थ हो जाएंगे और यदि कुछ शारीरिक समस्या है तो भी अपना काम नहीं छोड़ेंगे।
इसके विपरीत यदि जीवन में निराशा की भावना है तो बाहर से सब कुछ ठीक-ठाक होते हुए भी भीतर से मृत होंगे , उठने का मन नहीं करेगा , किसी से मिलने का मन नहीं करेगा। मन के भीतर का वार्तालाप सकारात्मक नहीं है तो शरीर की प्रतिक्रिया भी नकारात्मक होगी। बीमार नहीं हैं तो होने लगेंगे। यदि स्वस्थ रहना है तो जीवन में उत्साह बना कर रखें। यह संभव है जब कोई लक्ष्य पूरा करने की ललक मन में हो। लक्ष्य बहुत बड़ा ना हो , अपरिभाषित ना हो। एक स्पष्ट संभव दिखने वाला गोल हो तो उत्साह रहेगा पूरा करने का। सुबह कब होगी इसका इंतज़ार रहेगा जैसा कि डॉक्टर अब्दुल कलाम ने लिखा है।
हर सुबह कुछ नया करने का उत्साह हुआ। हर दिन उत्सव होगा। जीवन का अनुभव करेंगे ।
इस पोस्ट का शीर्षक एक बहुत पुरानी फिल्म ( सच्चाई : 1969 ) के गीत से लिया गया है।
-यशपाल एस जांगिड
प्रदेश मंत्री
अखिल भारतीय जांगिड ब्राह्मण महासभा, प्रदेशसभा, उत्तर प्रदेश
प्रदेश प्रभारी- विश्वकर्मा एजुकेशन ट्रस्ट, दिल्ली