पुराणों में भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण शिल्पियों का हो रहा है गुणगान देख लो-
पुरोहितं तथा अथर्व मन्त्र ब्राह्मण पारगम् ।( मत्स्य पुराण)
अर्थात- जो अथर्ववेदी शिल्पी ब्राह्मण के मन्त्र तथा ब्राह्मण भाग में पारंगत हो वही पुरोहित ( यज्ञ का ब्रह्मा) हो सकता है।
अभिषिक्तोवै_मन्त्रे_र्महि_भुंक्ते_स_सागरम् ।( मार्कण्डेय पुराण)
अर्थात-जिस राजा का अथर्ववेदी पारंगत शिल्पी ब्राह्मण द्वारा अथर्ववेद के मंत्रों से राज्याभिषेक किया गया हो वह समुद्रों सहित सारी पृथ्वी का भोग करता है।
अब वेदों में शिल्पियों का गुणगान देखें-
पौरोहित्य_च_अथर्व_विदेव_कार्यम्। तत्कतृ_क्रांणामं_कर्मणां_राज_भिषेकादिनानां_तत्रैव_विस्तरेण_प्रति_पादि_तत्त्वात् ।।
(अथर्ववेद संहिता उपोद्धात, सायण कृत भाष्य)
अर्थात- जो पुरोहित्व और अथर्ववेद का कार्य है वह सब शिल्पी ब्राह्मणों का कर्म है क्योंकि राज्याभिषेक आदि कार्यों को अथर्ववेदी शिल्पी ब्राह्मण ही विस्तार से प्रतिपादन कर सकते हैं।
कुलीनम्_क्षोत्रियम्_भृगवाङ्गिरो_विद्म। गुरुम्_वृणि_याद्भू_पति:।( अथर्व परिशिष्ट ३,१)
अर्थात- उत्तम( विश्वकर्मा कुलोत्पन्न) आचार्य जो कि शान्तिक और पौष्टिक कर्मों का करने वाला अथर्ववेद का वेत्ता शिल्पी ब्राह्मण हो उसे राजा अपना गुरु बनावे।
तस्मात्_भृगवाङ्गिरो_विद्म_कुय्यारत पुरोहितम्।(अथर्ववेद परिशिष्ट ३,३)
अर्थात- इसलिए राजा को चाहिए कि वह अथर्ववेद के वेत्ता शिल्पी ब्राह्मण को ही अपना पुरोहित बनावे।
-संकलन केदार_नाथ_धीमान हरिद्वार ( विश्वकर्मा_वैदिक)
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