यज्ञ में धीमान:DHIMAN(बुद्धिमान) विश्वकर्मा:VISHWAKARMA शिल्पी ब्राह्मण ही ब्रह्मा पद के अधिकारी हैं
यथैक पात् पुरुषो येन् अनुभय चक्रो वा रथौवर्तमानो।
भ्रषंमन्योति एवमेवास्य यज्ञों भरेषंन्येयति।।( गोपथ ब्राह्मण ३,२)
अर्थ- जैसे एक पैर वाला पुरूष व एक पहिये का रथ नही चल सकता वह नष्ट भ्रष्ट हो जाता है । इसी प्रकार वह यज्ञ भी जिसमे अथर्ववेदी शिल्पी ब्राह्मण ब्रह्मा न हो, असफल हो जाता है, और किसी भी शुभ फल का देने वाला नहीं होता अपितु विनाशकारी हो जाता है।
यज्ञ में धीमान:DHIMAN(बुद्धिमान) विश्वकर्मा:VISHWAKARMA शिल्पी ब्राह्मण ही ब्रह्मा पद के अधिकारी हैं
प्रजापतिर्यज्ञमतनुत: स ऋचैव होत्रम करोत् ।
यजुषाध्वर्यवं साम्नोद्गात्रमथर्वांगिमि ब्रह्मनत्वम्।।( गोपथ ब्राह्मण ३,२)
अर्थ- प्रजापति (विश्वकर्मा) ने यज्ञ की रचना की उसने ऋग्वेद के द्वारा होत्र, कर्म, यजुर्वेद के द्वारा अध्वर्यु, कर्म सामवेद के ज्ञाता सामवेदी से उद्गाता का कार्य और अथर्ववेदी शिल्पी ब्राह्मण का से ब्रह्मा का कार्य करने का अधिकार नियत किया है।
ब्रह्मा यज्ञ का प्रधान होता है उसका कर्तव्य है कि वह अथर्ववेद के मन्त्रों से आहुति दे और सब कार्यकर्ताओं की देख रेख करें। यदि कोई भूल चूक अथवा त्रुटि होवे तो उसका सुधार करे।
इसलिए शिल्पाचार्य महर्षि विश्वकर्मा भौवन वंशीय ब्राह्मण अर्थात रथकारा ऋभु लोग यज्ञ में "ब्रह्मा" पद के अधिकारी हैं। क्योंकि यह यज्ञ पात्र, हवन कुंड ( वेदी/VEDI ) बनाना जानते हैं।
जो ब्राह्मण यज्ञ पात्र (वेदी)इत्यादि बनाना नही जानता है वह ब्राह्मण यज्ञ करने, कराने का अधिकारी नही हो सकता। इसके अधिकारी महर्षि विश्वकर्मा भौवन वंशीय ऋभु रथकार धीमान शिल्पी ब्राह्मण लोग ही होते है। क्योंकि यह वेद की शिल्प विद्या में निपुण और हस्त क्रिया में कुशल है । यह रथ गाड़ी, यान, विमान, नोका, घर आदि का निर्माण करते, कराते चले आ रहे है। वेद में लिखा है-
यस्यां वेदि परिग्रहणन्ति भूम्यां यस्यां तन्वते।
विश्वकर्माण साना भूमिर्वर्धयत् वर्धमाना:।।
(अथर्ववेद कांड १२, सूक्त १, मन्त्र १३,)( धीमान कुलादर्शपृष्ठ५३)
अर्थ:- ( विश्वकर्माण) शिल्पी लोग ( यस्यां) जिस ( भूम्याम) पृथ्वी से ( वेदिम) वेदी हवन कुंड को (परिग्रहन्नति) सब ओर से सुन्दरता युक्त निर्माण करते हैं, और ( यस्यां) जिस वेदी में (यज्ञम) अग्नि होत्रादि होम को ( तन्वते) करते है( सा वर्धमाना) वह बढ़ी हुई ( भूमि नो) पृथ्वी हम सबका ( वर्ध्वत् ) बढ़ावे।
इस मंत्र ने (विश्वकर्माण) का अर्थ ही शिल्पी ब्राह्मणों के लिए प्रयुक्त हुआ है, जो कि यज्ञ पात्र वेदी हवन कुंड बनाने वाले और उसमे होम/HOME (यज्ञ) करने वाले कहे हैं।
यज्ञ में धीमान:DHIMAN(बुद्धिमान) विश्वकर्मा: VISHWAKARMA शिल्पी ब्राह्मण ही ब्रह्मा पद के अधिकारी हैं
विप्रा यज्ञेषु मानषेपु कारूमन्ये वां जात वेद सा यज्ञध्यै।
ऊधर्वनो अध्वरं कृतं हवेषु ता देवेषु वनथोवार्याणि। ।
( ऋग्वेद मण्डल ७, सूक्त २, मन्त्र ७)
अर्थ:- (विप्रा:) कारू है शिल्प कर्म के करने वाले स्त्री , पुरुषों ( वाम) तुम दोनों को( मानुषेयु) मनुष्य सम्बन्धी (यज्ञेषु) यज्ञों में ( विप्रा) ब्राह्मण ( मन्ये) मानता हूं, ( जात वेदसा) अग्नि के द्वारा (यज्ञध्यै) यज्ञ करो ( न:) हमारे (दिव्येषु) देवों के (हवेषु) बुलाने पर तथा ग्रहण करने योग्य घरों में(अध्वरम्) यज्ञ को ( उध्र्वम् ) उन्नत (कृतं) करो तथा ( वार्याणि) ग्रहण करने योग्य पदार्थों को ( वनथ:) सम्यक सेवन करो ( ता) वे (वाम्) तुम दोनों (यज्ञध्वै) संगत करो (मन्ये) मानते हैं।
रथं ये चक्रु सुवृतम् सुचेत सोयविह्वरन्तं मनसस्यपरिध्य्या।
तां उन्वस्य सवनस्य पीतये आवो वाजा ऋभवो वेद यामसि।।
(ऋग्वेद मण्डल ४, सूक्त ३६, मन्त्र २, धीमान ब्राह्मण कुलादर्श पृष्ठ १६)
अर्थ:- है सिद्धहस्त क्रिया पुरुषों ऋभवो बुद्धिमानों जो आप लोगों को इस शिल्प विद्या की त्रप्ति के लिए उत्तम विज्ञान वाले, विज्ञान के ध्यान से टेढ़ा न चलने वाले अंग ओर उपांगों के सहित उत्तम विमानादि वाहन को सब ओर से बनाते हैं, और जिनको हम लोग सब ओर से भली भांति जानते हैं उनको निश्चय करके आप लोग ग्रहण कीजिये। यह प्रसिद्ध है।
ब्रह्मणा शालां निमित्ताम् कविभि निर्मितां ।
इंद्राग्री राक्षतां शाला ममृतौ सोम्यं सदँ।।( अथर्ववेद ९, ३, १९)
अर्थ-(अमर्तो) स्वरूप से नाश रहित ( इंद्राग्री) वायु और पावक ( कविभि:) उत्तम विद्वान शिल्पियों ने ( मिताम्) प्रमाणयुक्त अर्थात माप में ठीक वैसी ही जैसी चाहिए वैसी(निमित्ताम) बनाई हुई ( शालां)शाला को और ( ब्रह्मणा:) चारों वेदों के जानने वाले विद्वान द्वारा सब ऋतुओं ने सुख देने वाली (निमित्ताम) बनाई हुई( शालां) शाला को प्राप्त होकर रहने वालों की (रक्षताम्) रक्षा करे, अर्थात चारों ओर का शुद्ध वायु शाला के अशुद्ध वायु को निकालता रहे और जिसमें सुगंधादि घृत का होम किया जाए वह अग्नि दुर्गंधादि को निकालकर सुगंध का स्थापन करे। वह ऐश्वर्य, आरोग्य, और सर्वदा सुखदायक रहने के लिए उत्तम घर है।
ऋर्षिविप्र पुर एता जनाना मृभुर्धिर।। (ऋग्वेद ९, ८७, ३)
अर्थ:- ऋभु रथकार अर्थात शिल्पी है (धीर) धीमान है ( विप्र) ब्राह्मण है (ऋषि) वेदार्थ का वक्ता है तथा जनता का नेता है।
विप्र: धीर: ऋभु:, विपश्चितः इत्यादि चतुर्वनशित मेधावी नामानि।( वैदिक निघण्टु अध्याय३, खण्ड१५)
अर्थ:- (विप्र:) ब्राह्मण (धीर:) धीमान (ऋभु रथकार ( विपश्चितः) पंडित इत्यादि मेधावी ब्राह्मणों के नाम हैं इससे स्पष्ट है कि ऋभु रथकार शिल्पी ब्राह्मण हैं। इस प्रकार शिल्पी ब्राह्मण को विश्वकर्मा ब्राह्मण कहते हैं , क्योंकि वह ही यज्ञादि कार्यो के अधिकारी हैं।
नमो रोहिताय स्थपतये० (यजु०अ०१६ मन्त्र १९)
उटवाचार्य भाष्य- स्थपतये स्थपति: गृहादीनां चेताचयनं करोति विश्व कर्म रूपपेण०।
महीधर भाष्य-स्थपति गृहादि कर्ता विश्वकर्म रूपेण तस्मै नमः।
अर्थ:- विश्वकर्मा के स्वरूप से मकानादि शिल्पीय पदार्थों की रचना करने वाले शिल्पियों को नमस्कार हो।
इस प्रकार शिल्पी ब्राह्मण को नमस्ते कर उनका सत्कार किया है
अतः जनता को चाहिये कि राजा सहित अंगिरा वंशीय विश्वकर्मा धीमान शिल्पी ब्राह्मणों को संतुष्ट करके उसका सत्कार करें।
-संकलन केदारनाथ धीमान हरिद्वार
मोबाइल-९४११५३८६६३
संदर्भ-(शिल्पाचार्य महृषि विश्वकर्मा, वेदादि, गोपथ ब्राह्मण, आदि)
साभार- विश्वकर्मा वैदिक पत्रिका