विश्वकर्मा ऋषियों के नाम
तथा संक्षिप्त गोत्रावली
rishi
वामदेव, दीर्घतमा, गोतम, परूच्छेप, भरताव, अगस्त्य, विश्वामित्र, कण्व, मध्ुच्छन्द, आत्रोय, विभ्रात्रोय, वशिष्ठ, परमेष्ठी, वत्स, सुश्रुत, सर्वस्यू।
वामदेव, दीर्घतमा, गोतम, परूच्छेप, भरताव, अगस्त्य, विश्वामित्र, कण्व, मध्ुच्छन्द, आत्रोय, विभ्रात्रोय, वशिष्ठ, परमेष्ठी, वत्स, सुश्रुत, सर्वस्यू।
उपरोक्त ऋषिगण विश्वकर्मा या शिल्पी नाम से वेदों में प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त भी अनेक ऋषि वेद में उन मन्त्रों के यंत्रार्थ दृष्टा है जिनमें शिल्प विद्या को परमात्मा ने कूट-कूट कर भरा है। इतना ही नहीं बल्कि वेद में बतलाया है कि-
येन ट्टषयस्तपसा सत्रा मायन्निन्धना अग्निछस्वराभस्तः।
तस्मिन्नहं निदध्ेनाके अग्निं यमाहुर्मन वस्तीर्णा वर्हिषम्।।
भावार्थ- जिस प्रकार से वेद पारग (विद्वान) (ऋषि) लोग सत्य का अनुष्ठान कर बिजली आदि पदार्थो को उपयोग में लाके समर्थ होते है। उसी प्रकार मनुष्यों को समृधि युक्त होना चाहिए
इत्यादि प्रकार से जो विद्वान वेद मन्त्रों के दृष्टा अर्थात वेदार्थ के वक्ता हुए है’ वह समस्त ट्टृषि लोग सुखों के निमित्त नाना प्रकार के शिल्पिीय पदार्थो की रचना करने वाले कालांतर में विश्वकर्मा ही हुए हैं।
देवी भागवत में लिखा हैः-
संख्या चन्द्रजसामस्ति विश्वानां कदाचन।
ब्रह्मा विष्णुशिवादिनां तथा संख्या न विद्यते।।
(श्री देवी भागवत अ0 3,7)
कदाचित रजः संख्या (ध्ूल के कणों) की गणना हो जाये किन्तु विश्व की संख्या की गणना सम्भव नही है। और इसी प्रकार कितने ब्रह्मा और कितने विष्णु और कितने महादेव हो चुके है। उनकी संख्या भी नहीं है। इसी प्रकार ब्रह्मा भी अनेक हुए है क्योंकि चारों वेदों के विद्वान नाम ब्रह्मा और चारों वेदों के विद्वान मुख्य शिल्पाचार्य का नाम लोक में विश्वकर्मा होता है। ऐसे विश्वकर्मा और ब्रह्मा युग-युग में अनेक होते आये है। और आगे भी होंगे।
कारण यह है कि जो-जो विश्वकर्मा अर्थात शिल्पी प्रसिद्ध ऋषि हुए है उन्हीं के वंशज यह सब धिमानादि शिल्पी ब्राह्मण हैं।
शिल्पी ब्राह्मण को विश्वकर्मा वंशीय क्यों कहते है। इसका अभिप्राय यह है। कि सब प्रकार के शिल्पकर्म करने वाले पूर्ण शिल्पी ब्राह्मण को विश्वकर्मा कहते है। और सर्वजगत कत्र्ता परमेश्वर आदि विश्वकर्मा है। उनको विराट विश्वकर्मा भी कहते हंै। जीवन मुत्तफो के सब मल दूर हो जाते हैं। और उनकी आत्मिक शत्तिफ का विकास होता है। रचना भी एक आत्मिक शत्तिफ है। अतः इसका भी विकास होना अवश्य सम्भावित है। इस कारण जीवन मुत्तफ मनुष्यों को विश्वकर्मा कहते हंै। शिल्पी लोग जैसे परमेश्वर को भी शिल्पकार के रूप में देखते है वैसे जीवन मुक्त मनुष्यों को भी शिल्पकार के रूप में ही देखा जाता है। शिल्पी ब्राह्मणों के गोत्रों को चलाने वाले समस्त ट्टषि जीवन मुत्तफ थे। अतः वह विश्वकर्मा हुए हैं। इसी कारण उनके चलाये गोत्रों में उत्पन्न हुए शिल्पी ब्राह्मण लोग अपने को विश्वकर्मा वंशीय कहते हैं। क्योंकि आदि में सर्व जगत कत्र्ता विश्वकर्मा परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। और महर्षि विश्वकर्मा के शिष्य हुए हैं। इस कारण यह पौरूषेय शिल्पी ब्राह्मण अपने को परम्परागत विश्वकर्मा वंशीय कहते हैं। संसार में इनके अनेक नाम है।-
संक्षिप्त गोत्रावली:-
विश्वकर्मा वंशीय ध्ीमानादि शिल्पी ब्राह्मणांे के:-
अंगिरस, भृगु, वसिष्ठ, अत्राी, देवसेन, जैसन, जयत्कुमार, उपमन्यु, विभ्राज, वनज, गर्ग, कपिल, वत्स, शंाडिल्य, गालब, कुत्स, ट्टभु, हरित, जमदग्नि, भारद्वाज, अगस्ति, गौतम, और वासुदेव आदि बहुत से गोत्र हैं। जिनको हम आगे अध्याय में विस्तार से लिखेंगे।
शिल्पी ब्राह्मणों के संक्षेप में नाम भेदः-vishwakarma brahmin hai ya nahi
विश्वकर्मा कुले जाताः शिल्पिनः ब्राह्मणस्मृताः।
तथा चतेषां संक्षेपाद नामानि प्रवदाम्यहम्।।
धीमान जांगिडोपध्याय टांक लाहोरी माथुरः। सूत्राधरो ककुहासो रामगढिया मैथिली।।
त्रिवेदी पिप्पला मालवीय मागध्श्च पँ चालर। कान्य कुब्जोलौष्ठा महूलियाश्च रावतः।।
सरवरियाश्च गौड देव कमलारो तथा। विश्वब्राह्मण कंशाली विश्वकर्मा नवन्दन।।
तर×चश्चैव पंचाालो आर्याश्च जगद्गुरूः। एतानि शिल्पी विप्राणां नामानित्रिंशतस्मृताः।।
अब हम विश्वकर्मा ब्राह्मणों के संक्षेप में नाम भेद कहते है।ः- ध्ीमान, जांगिड़, उपाध्याय, औझा, टांक तक्षा, लाहोरी, मथुरिया, सूत्राधर, ककुहास, रामगढिया, मैथिली, त्रिवेदी, पिप्पला प्लोटा, महूलिया, रावत, कान्यकुब्ज, मालवीय, मागध्, पंचालर, सरवरिया, गौड, देवकमलार, विश्वब्राह्मण, कंशाली, विश्वकर्मा, नवन्दन नवनन्दन, तरंच, पांचाल, आचार्य, और जगतगुरू।
इस प्रकार में शिल्पी ब्राह्मणों के नाम है। सो संक्षेप में जानना।
रामकिशनलाल विश्वकर्मा
भू0 प्रधानाध्यापक जगजीतपुर