3 फरवरी 2023 विश्वकर्मा प्रकट दिवस पर विशेष लेख-
सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण लेख
विश्व के प्रथम वैज्ञानिक अविष्कारक और इंजीनियर विराट विश्वकर्मा का विराट परिवार
अपने अद्वितीय सामर्थ्य से सारे ब्रह्माण्ड की अद्भुत रचना करने वाले, अपनी अनन्त शक्ति से प्रकृति के तीनो गुण- सत, रज, और तम और पांचो तत्वो को मिलाकर जीवो के कल्याण हेतु समस्त ईश्वरीय रचनाएँ बीज से गर्भ मे ही तैयार करके शानदार सृष्टि रचना कर समस्त जीवो को कर्मो अनुसार फल देने के कारण जगत पिता परमात्मा को विराट विश्वकर्मा कहां गया है.
समूचे बह्माण्ड की रचना करने के कारण उस निराकार सर्वशक्तिमान ईश्वर का एक नाम बह्मा भी है. और जो ऋषि आदि सृष्टि में चारो ऋषियों से चारो वेदो का ज्ञान प्राप्त कर प्राणी मात्र के कल्याण हेतू शिल्प कला के द्वारा रचना करता है उसे भी आदि बह्मा/त्वष्टा कहा जाता है। अर्थात् आदि सृष्टि का आदि बह्मा ही प्रथम विश्वकर्मा है।
उत्तत्यं चमसं नवं त्वष्टु दैवस्य निष्कृर्त्तम।
अकर्त्त चतुर: पूण:।।(ऋग्वेद मं० १, सू० २० म० ६)
भोवनपुत्र शिल्पदेव ऋषि विश्वकर्मा
आश्वलायन सर्वानुक्रमाणिका, षड्गुरू भाष्य अध्याय 3 में कहा हैं भुवन का पुत्र विश्वकर्मा, भुवन का पिता आप्तय ऋषि था जो अथर्ववेद के ऋषि अंगिरा का वंशज था.
भुवन मनुर्मयस्तथा त्वष्टा शिल्पी विश्वज्ञ एवं च । विश्वकर्मसुता ते रथकारास्तु पंच च ।।
(स्कन्द पुराण, नागर खण्ड अ05)
विराट् विश्वकर्मा और ऋषि विश्वकर्मा मे भेद
विराट् विश्वकर्मा और ऋषि विश्वकर्मा की समानता यह है की दोनो की रचनाएँ समस्त प्राणी मात्र के कल्याण और उपयोग के लिए बनाई जाती है. विराट् विश्वकर्मा की रचनाएँ बीज से गर्भ मे तैयार होकर बाहर आती है और धीरे धीरे अपनी विकास प्रक्रिया के द्वारा पूर्ण आकार को प्राप्त करती है. जैसे तेतीस कोटी (प्रकार) जीवो की उत्पत्ति. जबकि ऋषि विश्वकर्मा की रचना तीनो लोको तथा खगोल आदि की विधाओ, प्रकृति के पांचो तत्व अग्नि, वायु, आकाश, जल एवं पृथ्वी के गुण धर्म जानकर बाहर बनाकर तैयार की जाती है. विश्व कल्याण हेतु नये नये अविष्कार एवं रचनाएँ करते है ऐसे लोकोपकारी धीर गम्भीर शिल्पकार को विश्वकर्मा ऋषि की उपाधि दी जाती है,
विराट विश्वकर्मा का कार्य ऋषि विश्वकर्मा नही कर सकता और ऋषि विश्वकर्मा का कार्य विराट विश्वकर्मा नही कर सकता क्यो की दोनो ही अपने अपने नियमो मे बंधे है. जो भी इस रहस्य को जानता है वही सच्चा ईश्वर विश्वासी है.
शिल्प देव ऋषि विश्वकर्मा के गुण
विश्वकर्मा द्वारा शास्त्रों की रचना
रामायण काल में अपने समय का जो प्रथम सर्वोत्तम वैज्ञानिक शिल्पकार होता है जो विश्वकर्मा को शिक्षित करता था उसे शिव कहा जाता था. अर्थात विश्व के सर्वोत्तम वैज्ञानिक को शिव के नाम से जाना जाता था। यही कारण था कि भगवान राम ने समुद्र पर पुल बनाने से पहले उस समय के सर्वोच्च वैज्ञानिक शिव से परामर्श व आर्शीवाद लेकर उनकी सलाह से नल व नील नामक विश्वकर्मा से पुल का निर्माण कराया था।
संयम योग विद्या के आचरण से सिद्धी
स्कन्द पुराण अध्याय 5 - 6 के अनुसार विश्वकर्मा के उनकी पत्नि कृति के गर्भ से पांच पुत्र और दो पुत्रीयां उत्पन्न हुई. पुत्रो के नाम मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ जबकि पुत्रीयो के नाम सज्ञा और बहिष्मती रखा गया. विश्वकर्मा ने अपने पांचो पुत्रो और पुत्रियो को नियत समय पर यज्ञोपवीत संस्कार कर विध्याअध्यन के लिए गुरूकुल मे भेज दिया. जब ये पांचो विध्याअध्यन कर घर आये तो विश्वकर्मा ने उनका विवाह करके अलग अलग जिम्मेदारी सुपर्द कर तपश्चर्या करने का विचार किया.
स्कन्द पुराण के अनुसार विश्वकर्मा ने अपने पुत्र मनु का विवाह अंगिरा ऋषि की पुत्री कांचना से, मय का पाराशर ऋषि की पुत्री सोम्या(सुलोचना) से, त्वष्टा का कोशिक मुनि की पुत्री जयन्ती से, शिल्पी का भृगु ऋषि की पुत्री करूणा से, देवज्ञ का जैमिनि ऋषि की पुत्री चन्द्रिका से किया गया. पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य नामक तपस्वी शिल्पज्ञ युवक से जबकि दुसरी पुत्री बहिष्मती का विवाह पृथ्वीपति महाराज प्रियव्रत से करके आप पितृ ऋण से मुक्त होकर इलाचल पर जाकर तपश्चर्या करने लगे.
पांचो पुत्रों को कार्य आवटन
प्रथम पुत्र मनु ने ऋग्वेद का अध्ययन कर आर्युवेद और आश्वासन सूत्रो मे दक्षता प्राप्त की अत: उनको लोह सम्बधी शील्प ज्ञान विज्ञान से प्राणीयों का उपकार करने का आदेश दिया. दुसरे पुत्र मय ने यजुर्वेद का अध्ययन कर धनुर्वेद तथा आपस्तम्ब सूत्रो मे दक्षता प्राप्त कर काष्ठ शिल्प मे दक्षता प्राप्त की अत: इनको काष्ठ ज्ञान विज्ञान से प्राणीयों का उपकार करने का आदेश दिया. तीसरे पुत्र त्वष्टा ने सामवेद का अध्ययन कर गांधर्व वेद दाक्षायन सूत्र और ताम्र सहिता मे दक्षता प्राप्त की अत: इनको विभिन्न धातुओं के निर्माण का ज्ञान विज्ञान कर उपकार करने का आदेश दिया. चोथे पुत्र शिल्पी ने अथर्ववेद का अध्ययन कर शिल्प वेद बोद्धायन सूत्रो एवं शिल्प सहिता मे दक्षता प्राप्त की अत इनको मिट्टी पत्थर के भवन जलाशय पात्र आदि बनाकर उपकार करने का आदेश दिया. पांचवे पुत्र देवज्ञ ने चारो वेदो का अध्ययन कात्यायन सूत्रो, स्वर्ण संहिता, योग ध्यान, इतिहास आदि मे दक्षता प्राप्त की अत इनको स्वर्ण ज्ञान विज्ञान से जगत का उपकार करने का आदेश दिया. देव शिल्पी विश्वकर्मा के पांचो ब्रह्मऋषि पुत्रो ने पिता की आज्ञा से अलग अलग लोको मे अपने अपने गुरुकुल (विश्वविद्यालय) स्थापित कर लोहे, लकडी, ताम्बे, पत्थर तथा स्वर्ण से नाना प्रकार की वस्तुओ का निर्माण का ज्ञान देकर शिल्प, ज्ञान, विज्ञान, कला, कोशल की विधाओं का विस्तार किया. उन पांचो ब्रह्मऋषियो के पच्चीस पच्चीस प्रकार के मुख्य शिष्य हुए, इनसे पच्चीस पच्चीस गोत्र चले.
इन सभी ऋषियों ने भी अपने अपने गुरूकुल खोलकर ज्ञान विज्ञान और शिल्प कला का विस्तार किया. ये महर्षि शिल्प ज्ञान विज्ञान के विश्वविख्यात ज्ञाता हुए. इन्होने शिल्प के अतिरिक्त अन्य विधाओ मे भी दक्षता प्राप्त की इन महर्षियो के भी शिष्य परम्परा से अनेक गौत्र चले.
आदि गुरु ऋषि विश्वकर्मा ज्ञान विज्ञान के दाता है। अतः विश्वकर्मा किसी जाति, धर्म एवं देश से ऊपर हैं। उनका आर्शीवाद और उपकार प्राणी मात्र पर है। जो भी व्यक्ति विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रहा है विश्वकर्मा की कृपा उन पर बरसती है। ये किसी जाति समुदाय विशेष के लोक देवता न होकर सम्पूर्ण मनुष्य जाति के पुजनिय और वन्दनीय है. जिस प्रकार सुरज समस्त पृथ्वी पर प्रकाश करता है. उसी प्रकार विश्वकर्मा समस्त जगत का उपकार करता है. भारत सरकार से मांग है की ऐसे जगत उपकारी देव की जयन्ती माघ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को सरकारी अवकाश घोषित कर विश्वकर्मा जी का आर्शीवाद प्राप्त करे. शिल्प ज्ञान विज्ञान को सरकारी स्कूलो के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर नये नये विश्वकर्माओ ( वैज्ञानिक, इंजिनियर) का निर्माण करे जिससे हमारे राष्ट्र मे शिल्प ज्ञान विज्ञान का विस्तार होकर हमारा देश पुन: प्राचीन काल की तरह सोने की चिडियां बने.