ब्रह्मर्षि अंगिरा पंचमी/ ऋषि पंचमी 2023-24
Brahmrishi Angira Panchami / rishi Panchami
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ब्रह्मर्षि अंगिरा पंचमी/ ऋषि पंचमी / Brahmrishi Angira Panchami rishi Panchami
ऋषि पंचमी के पीछे क्या कहानी है?
ऋषि पंचमी का दिन वेद दिन माना जाता है। इस दिन का महत्व यह है कि जिन प्राचीन ऋषियों ने अपने संपूर्ण जीवन का त्याग कर वेदों जैसे अमर वाड्मय निर्माण किया उनके प्रति ऋणी रहकर कृतज्ञता के साथ स्मरण किया जाए।
ब्रह्मर्षि अंगिरा
अंगिरा ऋषि को विश्वकर्मा परब्रह्म ने अपने से उत्पन्न किया और उनके हृदय में चार वेदों में ब्राह्मणों के लिये श्रेष्ठ वेद अथर्ववेद का ज्ञान प्रकट हुआ। इसके अतिरिक्त के तीन वेद के ज्ञान ऋग्वेद-अग्नि ऋषि , यजुर्वेद-वायु ऋषि और सामवेद-सूर्य ऋषि के हृदय में प्रकट हुआ।
मनुस्मृति के इस श्लोक से वेदों की रचना का रहस्य समझा जा सकता है -
अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम।
दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु: समलक्षणम्॥
- मनुस्मृति - 1/13
अर्थात - जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न करके अग्नि आदि चारों महर्षियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये और उस ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा से क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान ग्रहण किया ।
अथर्ववेद का एक कल्प आंगिरस कल्प है। ब्रह्मर्षि अंगिरा के तेज और तप के आगे अग्नि भी तेजहीन थी जिस कारण अग्नि ने अंगिरा जी से विनँति कर अपने तेज को कम करने को कहा अन्यथा उनकी अग्नि को कोई नहीँ पूजेगा। अग्नि की व्यथा देखकर अंगिरा जी अग्नि द्वारा स्वयं को उत्पन्न करके उनके पुत्र भी कहलाये। ये मनुष्य जाति के प्रथम आदि पुरूष हैं जिन्होंने अग्नि उत्पत्र की भाषा और छन्द विद्या का आविष्कार किया ऋग्वेद के नवम मण्डल के मन्त्रों के द्दष्टा अपने वंशधरों को एक मण्डल में स्थापित किया, ब्रह्मदेव से ब्रह्मविद्या प्राप्त कर समस्त ऋषियों को ब्रह्माज्ञान का तत्व दर्शन उपदेश किया ।
इन्होंने आदित्यों से स्वर्ग में पहले कौन पहुचे ऐसी शर्त लगाई और स्वर्गकाम यज्ञ किया किन्तु आदित्य स्वयं तेजधारी होने से पहिले पहुंचे महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 83 में कहा गया है कि अग्नि से महा यशस्वी अंगिरा भृगु आदि प्रजापति ब्रह्मदेव है।
अंगिरासों नः पितरो नवग्वा अर्थर्वाणो भृगबः सोम्यासः।
तेषां वयं सुभतौं यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसः स्यामः।।
- ऋग्वेद 10-14-6
अर्थात - जिसके कुल में भरद्वाज, गौतम और अनेक महापुरूष उत्पन्न हुए ऐसे जो अग्नि के पुत्र महर्षि अंगिरा बडे भारी विद्वान हुए है उनके वशं को सुनों।
अंगिरस देव धनुष और बाण धारी थे, उनको ऋषि मारीच की बेटी सुरूपा व कर्दम ऋषि की बेटी स्वराट् और मनु ऋषि कन्या पथ्या यह तीनों विवाही गई। सुरूमा के गर्भ से बृहस्पति, स्वराट् से गौतम, प्रबंध, वामदेव उतथ्य और उशिर यह पांछ पुत्र जन्में, पथ्या के गर्भ से विष्णु संवर्त, विचित, अयास्य असिज, दीर्घतमा, सुधन्वा यह सात पुत्र उत्पन्न हुए। उतथ्य ऋषि से शरद्वान, वामदेव से बृहदुकथ्य उत्पन्न हुए। महर्षि सुधन्वा के ऋषि विभ्मा और बाज यह तीन पुत्र हुए। यह ऋषि पुत्र हुए। महर्षि सुधन्वा के ऋषि विभ्मा और बाज यह तीन पुत्र हुए। यह ऋषि पुत्र ऱथकार में बडें कुशल देवता थे, तो भी इनकी गणना ऋषियों में की गई है। बृहस्पति का पुत्र महा य़शस्वी भरद्वाज हुआ, यह सब अंगिरा भृगु आदि शिल्प के निर्माण वाले रथकार (धीमान) नाम से प्रसिद्ध हुए। " रथों करोती इति रथकार: " अर्थात जो शिल्पी रथ बनाने की विद्या जानते है वो ही रथकार (धीमान)अर्थात विश्वकर्मा ब्राह्मण है।
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 83 में अंगिरा ऋषि के आठ पुत्रों की आग्नेय सज्ञां होने के विषय में यह उल्लेख हैः
अष्टौ चांगिरसः पुत्राः आग्नेयास्तेSप्युवाह्रताः। बृहस्पतिरूतथ्यश्य पयस्यः शांतिरेवच।
धोरो विरूपः संर्वतः सुधन्वा चाष्टमः स्मृतः।
अथर्ववेद के ऊपवेद में ही स्थापत्य वेद है जिसमें सम्पूर्ण वास्तु एवम शिल्पशास्त्र है जिसे पढ़कर विश्वकर्मा वंशी शिल्पकार ब्राह्मण अर्थात विश्वकर्मा ब्राह्मण भी कहलाये । बह्मर्षि अंगिरा रचित अथर्ववेदी (चतुर्वेदी) ही यज्ञ में ब्रह्मा पद (सर्वोच्च यज्ञ कर्ता) का अधिकारी होता है क्योंकि वो चारों वेदों का स्वामी होता है। गोपथ ब्राह्मण के अनुसार अकुशल ऋत्विजों से यज्ञ नष्ट हो जाता है- 'यद् वै यज्ञे कुशला ऋत्विजो भवन्त्यचरितिनो ब्रह्मचर्यमपरार्ध्या वा तद् वै यज्ञस्य विरिष्टमित्याचक्षते।[25] ।
अथर्ववेदियों के बिना सोम-यागों का सम्पादन नहीं हो सकता- 'नर्ते भृग्वङ्गिरोविद्भ्य: सोम: पातव्य:। ऋत्विज: पराभवन्ति, यजमानो रजसापवध्यति, श्रुतिश्चापध्वस्था तिष्ठति।'[26] ।
यज्ञ का स्वरूप, गति और तेज़ यदि ऋक्, यजुष् और साम पर निर्भर है, तो माया भृग्वङ्गिरसों अर्थात् अथर्ववेद पर।[27] । इसी प्रकार ऋग्वेदीय मण्डलों से यज्ञ के पार्थिवरूप, का, अन्तरिक्षरूप का यजुष् से और सामवेद से द्युलोक का आप्यायन होता है, अथर्ववेद से जलरूप का। ब्रह्मा अथर्ववेदीय मन्त्रों से यज्ञ के हानिकारक तत्त्वों को शान्त करता है- 'तद् यथेमां पृथिवीमुदीर्णा ज्योतिषा धूमायमानां वर्षं शमयति, एवं ब्रह्मा भृग्वङ्गिरोभिर्व्याहृतिभिर्यज्ञस्य विरिष्टं शमयति।[28]
विभिन्न इन्द्रियों की दृष्टि से भी ब्रह्मा के वैशिष्ट्य का निरूपण गोपथ-ब्राह्मण में हुआ है। तदनुसार होता वाणी से, अध्वर्यु प्राण और अपान से, उद्गाता नेत्रों से तथा ब्रह्मा मन से यज्ञ का सम्पादन करता है- 'मनसैव ब्रह्मा ब्रह्मत्वं करोति।'।[29]।
'चत्वारि श्रृङ्गा.' प्रभृति सुप्रसिद्ध मन्त्र की यज्ञपरक व्याख्या गोपथब्राह्मणकार ने की है। 'महो देव:' की व्याख्या करते हुए यज्ञ को ही महान् देवता बतलाया गया है।[30]
यज्ञ के अशान्त अश्व को तीनों वेद शान्त नहीं कर सके, तब उसे अथर्ववेद से ही शान्त किया जा सका।[31]
ब्रह्मा की प्ररोचना गोपथ में सर्ववेत्ता के रूप में की गई है- 'एष ह वै विद्वान् सर्वविद् ब्रह्मा यद् भृग्वङ्गिरोविदिति ब्राह्मणम्'[32]।
मानव-शरीर के विभिन्न अंगों से यज्ञ की समानता प्रदर्शित करने की ब्राह्मण-ग्रन्थों की परम्परा का अनुपालन गोपथ-ब्राह्मणकार ने भी किया है। अंगिरा रचित अथर्वेद में कहा गया है की " येनो पंचशिल्पीन: विश्वकर्मणाय: "
अर्थात ये जो पाँच शिल्पी है जो पाँच प्रकार के शिल्प कर्म करते है ये विश्वकर्मा पारब्रह्म से उत्पन्न उनके ही अंश है।
अंगिरा वंशी अथर्वेदी की विशेषताएँ ; अथर्ववेद वेदों में चौथा वेद है जिसमें ब्राह्मणों के यज्ञ यज्ञादि से सम्बन्धित सभी क्रियाओं का वर्णन है जैसे बिना अथर्ववेद के ज्ञान के ब्राह्मण षट्कर्म नहीँ कर सकता जिसके निर्वहन से वो ब्राह्मण कहलाते है। ब्रह्मर्षि अंगिरा रचित अथर्वेदी ब्राह्मण चारों वेदों का ज्ञाता होता है इसलिये अथर्वेदी ब्राह्मण चतुर्वेदी भी कहलाता है। इसलिये ब्रह्मर्षि अंगिरा अथर्वेदी के साथ चतुर्वेदी भी कहलाते है क्योंकि अथर्वेद चतुर्थ वेद है और गुरुकुल नियमों के अनुसार वेदों की शिक्षा प्रथम वेद से प्रारंभ की जाती है ।
अंगिराऋषि ब्रह्मर्षि थे। दिग्विजयी प्रतापी होने के कारण इन्हे जांगिड कहा गया । अंगिरा ऋषि(अंगिरसो) के आश्रम जांगल देश मे थे इसलिये भी जांगिड कहलाये। आदि शिल्पाचार्य भुवन पुत्र विश्वकर्मा देवों के शिल्पी होने से जाँगिड कहलाये और धी अर्थात तीक्ष्ण बुद्धि का होने के कारण धीमान कहलाये । विश्वकर्मा जी अंगिराकुल के होने के कारण विश्वकर्मा वंश परम्परा के पूज्यनीय एवं उनके प्रेरक गुरु और भगवान है। अथर्ववेद के 19 मे कांड सूक्त 34 मंत्र 1 मे लिखा है-
" जंगीडोअसि जांगिड "
अर्थात अंगिरा जाति का दूसरा नाम जांगिड है।
विश्वकर्मा वंशजों का तो अंगिरा से सीधा ही संबंध है। विश्वकर्मा शिल्पी ब्राहाण लोग अथर्ववेदी हैं, अथर्ववेद का ज्ञान परमात्मा ने अंगिरा ऋषि द्वारा ही ब्रह्रमा और दूसरे ऋषियों तक पहुचाया है, सृष्टी के आरंभ में चार ऋषियों द्वारा ही चारों वेंदों का ज्ञान मानव मात्र के लिये दिया, ऐसा वेदों की मान्यता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामदेव और अर्थर्ववेद का ज्ञान क्रमश: अग्नि, वायु आदित्य और अंगिरा ऋषि द्वारा ही मानव जाति को प्राप्त हुआ ।
विश्वकर्मा ब्राह्मण कुल उच्च ब्राह्मण कुल है।
शास्त्रों में भी लिखा हैः-
स्थपति स्थापनाई : स्यात् सर्वशास्त्र विशारद : ।
न हीनागडों अतिरिक्तगडों धार्मिकस्तु दयापर:।। 1 ।।
अमात्सर्यो असूयश्चातन्द्रियतस्त्वभिजातवान् ।
गणितज्ञ : पुराणज्ञ सत्यवादी जितेन्द्रिय:। 2 ।।
अर्थात - जो शिल्पी निर्माण कला में सिध्दहस्त सन्पूर्ण शास्त्रों का पूर्ण पंडित हो जिसके शरीर का कोई अवयव न अधिक हो न कम हो, दयालु और धर्मात्मा तथा कुलीन हो ।।1।। जो अहंकार करनेवाले ईर्ष्यालु और प्रमादी न हो, गणित विद्दा का पुर्ण पडिंत हों, वेंदों के व्याख्यान रुप ब्रह्मण ग्रथों और इतिहास में पारंगत हो, सत्यवादी तथा इन्द्रियों को जीतने वाला आज्ञाकारी हो इस प्रकार के गुणों से युक्त रचियता को विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मण कहते है ।।2।।
Rishi Panchami 2024
Rishi Panchami 08 September 2024
आप सभी देशवासियों को "विश्वकर्मा वैदिक" पत्रिका की ओर से ब्रह्मर्षि अंगिरा पंचमी/ ऋषि पंचमी बहुत-बहुत हार्दिक बधाई और अनन्त शुभकामनाएं
ऋषि पंचमी क्यों मनाई जाती हैं?
भाद्रपद शुक्ल पंचमी तद्नुसार रविवार 08 सितम्बर 2024 ब्रह्मर्षि अंगिरा जी का प्रकटोत्सव है
जाने-अनजाने में महिला द्वारा हुए पापों से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी का पूजन किया जाता है।