मूर्ति को जीवंत कर देते है सुनील धीमान
adbhut kalakar
Murtikar Sunil Dhiman
मूर्ति बनाने में पिता का हाथ बंटाते-बंटाते टोहाना के सुनील कब एक अच्छे मूर्तिकार बन गए, उन्हें खुद ही पता नहीं चला। महज 10वीं कक्षा तक पढ़े सुनील धीमान ने 17 साल की उम्र में पिता से विरासत में मिली इस कला को आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया।
आज उनकी बनाईं मूर्तियां केवल हरियाणा ही नहीं, आसपास के राज्यों में भी काफी मशहूर हैं। वह चार-पांच फीट से लेकर 60 फीट तक ऊंची मूर्ति को ऐसा रूप देते हैं कि देखने वालों को लगता है कि ये मूर्तियां अभी बोल उठेंगी।
दूसरे राज्यों में भी डिमांड
सुनील के पिता पिछले 52 साल से मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने भी इस कला की शुरुआत मात्र 15 साल की उम्र में की थी। इस दौरान हरियाणा के अलावा वह पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश आदि प्रदेशों में बेहतरीन मूर्तिकला का नमूना पेश कर चुके हैं।
अपने पिता से विरासत में मिले हुनर को जिंदा रखने और मूर्तिकला के प्रति उनके प्रेम ने सुनील को एक बेहतरीन मूर्तिकार बनने का मौका दिया।
वह फिलहाल टोहाना स्थित रामनगर इलाके में अपनी वर्कशॉप में इस कला को निखार रहे हैं। खुद सीएम भी उनके काम की सराहना कर चुके हैं।
पिता गुरबचन सिंह श्रेष्ठ मूर्तिकार
ये हैं खास कृतियां
सुनील ने अपने पिता गुरबचन सिंह के साथ मिलकर कई ऐसी मूर्तियां बनाईं हैं, जिन्हें काफी सराहा गया है। सुनील बताते हैं कि टोहाना में 61 फीट ऊंची हनुमान जी की मूर्ति और संकट मोचन मंदिर में 21 फीट ऊंची मूर्ति बनाई है। वहीं, रोहतक शहर स्थित गौकर्ण धाम में उन्होंने 51 फीट ऊंची मूर्ति बनाई है।
नरवाना के पास कलायत गांव में दुर्गा मां की 48 फीट ऊंची द्विमुखी मृर्ति बनाई गई है, जो दोनों ओर से देखने पर एक जैसी दिखाई देती है। वहीं, मानसा में गौशाला में गंगा अवतरण का जीवंत दृश्य प्रस्तुत किया गया है। मानसा के ही रामबाग में हनुमान जी की विशाल मूर्ति भी बनाई गई है।
इसके अलावा बठिंडा, कोटकपुरा, पातड़ां, लुधियाना आदि बड़े शहरों व पंजाब के कई गांवों में महान हस्तियों, स्वतंत्रता सेनानियों, संत-महापुरुषों के बुत भी बनाए हैं। संगरूर के भवानीगढ़ शहर में शंकर भगवान की 45 फीट ऊंची मूर्ति भी बेहतरीन कारीगरी का नमूना पेश करती है।
लग जाते हैं दो से तीन माह
पहले अधिकतर मूर्तियां सीमेंट और मिट्टी की बनाई जाती थीं। समय के साथ इनमें भी काफी बदलाव आया है। अब 20-22 फीट तक की मूर्तियां फाइबर से बनाई जाने लगी हैं।
फाइबर की खासियत यह है कि इसमें फिनिशिंग अच्छी आती है। वहीं, इससे बड़ी मूर्तियां सीमेंट की बनाई जाती हैं। सुनील का कहना है कि यह काम काफी अच्छा है और अगर आपके अंदर कला है तो मान-सम्मान भी मिलता है। मेरे साथ काम करने वाले और भी दो-चार लोगों को रोजगार मिला है।
पांच से छह फीट ऊंची मूर्ति बनाने में दो माह का समय लग जाता है, जबकि 20 फीट या इससे ज्यादा ऊंचाई की मूर्ति बनाने में करीब छह माह लग जाते हैं।
सुनील धीमान अब अपने 14 साल के बेटे हितेश को भी मूर्तिकला में पारंगत बना रहे हैं। 9वीं कक्षा के छात्र हितेश को भी अपने दादा और पिता की तरह इस काम से काफी लगाव है। गुरबचन सिंह कहते हैं कि आज यह कला सिमट कर रह गई है, जिसे बढ़ावा देने की जरूरत है।