kanya sankranti 2023 :
मन्त्र द्रष्टा महर्षि और देवता विश्वकर्मा भौवन
यो विश्वं सर्वकर्म क्रियामाणस्य स विश्वकर्मा:
अर्थात- जो एकमात्र ब्रह्म परमात्मा समस्त संसार की उत्पत्ति से लेकर प्रलय के साथ समस्त कर्म करने की योग्यता रखता है उस परमेश्वर को ' विश्वकर्मा ' कहा जाता है।
Kanya sankranti 2023:सूर्य देव 17 सितंबर, 2023 को सुबह 7 बजकर 11 मिनट पर सिंह राशि को छोड़कर कन्या राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सूर्य के कन्या राशि में गोचर को कन्या संक्रांति कहते हैं। सूर्य के बुध की राशि में गोचर से बुधादित्य योग भी बनने वाला है। इस दिन 5 उपाय करने से आप कर्ज से मुक्त जाएंगे।
Kanya sankranti 2023 :
कन्या संक्रांति के दिन करें 5 उपाय, कर्ज से मुक्त हो जाएंगे
सूर्य को अर्घ्य देना : कन्या संक्रांति के दिन नदी स्नान करने का खास महत्व होता है। स्नान करके भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य देकर उनकी पूजा की जाती है। कन्या संक्रांति के दिन सूर्य को अर्घ्य देने से सभी तरह की समस्याओं का अंत होता है। नौकरी और व्यापार में उन्नति होती है। समान में मान सम्मान बढ़ता है।
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पितृ तर्पण और शांति कर्म : कन्या संक्रांति17 september का दिन पितरों के निमित्त शांति कर्म करने के लिए बहुत ही उत्तम दिन होता है। इस दिन पितृ तर्पण या पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति कराने से सभी तरह के संकट दूर होते हैं।
विश्वकर्मा पूजन : कन्या संक्रांति पर विश्वकर्मा पूजन किया जाता है जिस वजह से इस तिथि का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। विश्वकर्मा पूजन करने से सभी तरह की आर्थिक समस्याओं का निराकरण होता है। कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजन करने से सभी पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन विश्वकर्मा पूजन करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। सभी तरह की समस्याओं का अंत होता है। नौकरी और व्यापार में उत्तरोत्तर उन्नति (वृद्धि) होती है। सभी जगह समाज में मान सम्मान बढ़ता है। तथा भगवान विश्वकर्मा जी अपने भक्तों पर प्रशन्न होते हैं ओर भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है अतः अपने अपने संस्थानों, फैक्टरियों, कारखानों तथा घरों में विश्वकर्मा पूजा विशेष फलदायी है। इस सक्रांति को सर्वप्रथम समस्त देवताओं ने सचिदानंद भगवान विश्वकर्मा जी की स्तुति की थी ।
दान : कन्या संक्रांति के दिन गरीबों को दान दिया जाता है। दान देने से सभी तरह की आर्थिक समस्या का निराकरण होता है। इस दिन नदी स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य दें और फिर दान पुण्य का कार्य करें।
विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर क्यों मनाया जाता है
विश्वकर्मा जी का पूजन हर दिवस प्रत्येक धार्मिक कार्य में होना अथवा किया जाना आवश्यक हैं। किन्तु अन्य ‘संक्रान्ति’ की अपेक्षा ‘कन्या संक्रान्ति’ को मुख्य माना जाता है, क्योंकि यह वातयुक्ति युक्त है तथा प्रमाणों और तर्क के आधार पर ‘शरद ऋतु’ से ‘सृष्टि’ की रचना प्रारम्भ हुई। प्रलय के समय जब पंच भूत अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी तथा आकाश आदि परमेश्वर में लीन हो जाते हैं और सूर्य का प्रकाश भी समाप्त हो जाता है, तब जगत् शरद 'ठंडा' होकर प्रलय को प्राप्त होता है। उसी शरद में परमेश्वर फिर से सृष्टि की रचना करता है। इसलिए इस कन्या सक्रांति को सर्वप्रथम समस्त देवताओं ने सचिदानंद भगवान विश्वकर्मा जी की स्तुति की थी। तभी आदिकाल से विश्वकर्मा पूजन की परंपरा आरम्भ हुई।
इस दिन विशेष पूजा यज्ञ हवन हेतु नीचे पीडीएफ में वैदिक यज्ञ विधि (विश्वकर्मा सूक्त के 31 मंत्रों सहित) दी जा रही है पाठक गण लाभ ले और भगवान विश्वकर्मा को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करें । धन्यवाद