वसु पुत्र विश्वकर्मा
Vasu putr vishwakarma ji
ब्रह्मा के वंश में एक धर्म ऋषि नामक पुत्र हुए।
दक्ष प्रजापति ने अपनी दस कन्यायें धर्म ऋषि को, तेरह कन्यायें कश्यप को विवाही थी धर्म ऋषि के वसु नामक पत्नी से आठ वसु उत्पन्न हुये जिनके नाम धर, ध्रुव, सोम, आप, अह, अनल, प्रत्युष और प्रभास है। इनमें आठवें वसु प्रभास की पत्नी वरस्त्री थी।
अर्थात-
बृहस्पतेस्तु भगिनी वरस्त्री ब्रह्मवादिनी।
प्रभासस्य तु भार्या सा वसूनामष्टमस्य हं ।। २७।।
विश्वकर्मा महाभागो जो शिल्पप्रजापतिः कर्ता शिल्पसहस्वाहां त्रिदशानां च वार्धकिः ४ ||२८||1
बृहस्पति की बहन ब्रह्मवादिनी वर स्त्री आठवें वसु प्रभास की धर्म पत्नि थी। शिल्पकर्म के प्रजापति महाभाग विश्वकर्मा उन्हीं से उत्पन्न हुए है। वह सहस्त्रों शिल्पों के निर्माता तथा देवताओं की वृद्धि करने वाले कहे जाते है।
वायु पुराण उत्तर भाग अध्याय २२ में श्लोक १५ से २२ तक यही वृत स्वल्प पाठभेद से लिखा है उसमें भी पत्नी का नाम वरस्त्री है। लगभग सभी पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है। केवल स्कन्द पुराण प्रभास खण्ड ७ अध्याय २१ श्लोक १६ मे वरस्त्री के स्थान पर भुवना नाम दिया है।
बृहस्पतेस्तु भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।
यही भुवना नाम
ब्रह्मण्ड पुराण अध्याय- १४ श्लोक ७७ में भी आता है।
इस तरह प्रभास की पत्नी का बहुसम्भत नाम वरस्त्री है। प्रभास वसु तथा वरस्त्री से वसुपुत्र विश्वकर्मा उत्पन्न हुए तथा इन्होंने भी शिल्प कार्य किये।
विष्णु पुराण अंश १ अध्याय १५ श्लोक १२२ के अनुसार वसुपुत्र विश्वकर्मा के अजैकपात्, अहिर्बुधन्य, त्वष्टा तथा रुद्र नामक चार पुत्र उत्पन्न हुए
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