विश्वकर्मा पूजा त्वष्टा विश्वकर्माआदि ब्रह्मा महर्षि सुधन्वा विश्वकर्मा एवं गोवर्धन पूजा
की समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं
(कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा विश्वकर्मा पूजा विनायक पूजा पर विशेष प्रस्तुति)
कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के पावन पर्व पर त्वष्टा विश्वकर्मा(आदि ब्रह्मा) और महर्षि सुधन्वा विश्वकर्मा पूजा एवं गोवर्धन पूजा का विशेष पर्व मनाया जाता है। (संदर्भ ग्रन्थ ऋग्वेदादि ग्रन्थ, शिल्पाचार्य विश्वकर्मा)) गोवर्धन पूजा के दिन गाय की पूजा की जाती है और अन्नकूट महोत्सव भी मनाया जाता है। मान्यता यह है कि इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाना चाहिए। इसके बाद इन्हीं गोवर्धन भगवान की पूजा भी की जानी चाहिए। विश्वकर्मा पूजा दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा के दिन त्वष्टा विश्वकर्मा और महर्षि सुधन्वा विश्वकर्मा के पूजन के कारण विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है। पंडित उदयराम सिद्धान्तरत्न ने अपनी पुस्तक विश्वकर्मा वंश भास्कर अप्रकाशित में इस दिन त्वष्टा विश्वकर्मा(आदि ब्रह्मा) महर्षि सुधन्वा विश्वकर्मा के नाम से वर्णित हैं। वैसे इस दिन कई मान्यताएं हैं। शास्त्रों के आधार पर ब्रह्मा के पुत्र अंगिरा,अंगिरा के पुत्र अथर्वा,अथर्वा पुत्र धिष्णु और धिष्णु के पुत्र महर्षि सुधन्वा हुए।
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट की पूजा भी कहा जाता है। इस दिन नए अनाज का भोग लगाया जाता है भगवान के लिए छप्पन भोग बनाया जाता है मान्यता ये हैं कि अन्नकूट महोत्सव मनाने से मनुष्य को लंबी आयु प्राप्त होती है। इसलिए इस दिन का विशेष महत्व बढ़ जाता है।
इस दिन केवल गाय के गोबर की नहीं बल्कि गाय, बैल, बछड़ों (गोवंश) की पूजा किए जाने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार गोवर्धन पूजा के दिन गाय का पूजन करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। गोवर्धन पूजा को खासतौर पर उत्तर भारत में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के प्रकोप से गोकुल वासियों को बचाने के लिए अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था। श्री कृष्ण ने ऐसा कर देवराज इंद्र का इसके बाद से ही गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा आरंभ हुई थी। किन्तु गोवंश की पूजा का विधान आदिकाल से है।
इसी दिन विशेष रूप से त्वष्टा विश्वकर्मा (आदि ब्रह्मा) तथा सुधन्वा विश्वकर्मा की पूजा का महत्व है जो दीपावली लक्ष्मी पूजन के अगले दिन गोवर्धन पूजा के दिन ही होती है। महर्षि सुधन्वा भगवान रामचंद्र जी के धनुर्विद्या आचार्य भी थे। इसके प्रमाण वाल्मीकि रामायण 2/ 100/ 14 से प्रमाणित हैं। इन्हें विश्वकर्मा की उपाधि भी प्राप्त थी। इनके 3 पुत्र हुए जो महान रथकार धीर(धीमान) ब्राह्मण थे जिनके नाम ऋभू, विंभा और वाज थे। जिनको वेदों में मूल रूप से ऋग्वेद में देवता की उपाधि प्राप्त है इन्होंने अपने ब्रह्मशिल्प विद्या से अनेकों प्रकार के दिव्य विमान बनाएं जो पृथ्वी, जल और आकाश पर समान रूप से विचरण करते थे। इन रथकार ब्राह्मणों ने अनेकों प्रकार के दिव्य शिल्प की रचनाएं की हैं।
ऋषि सुधन्वा जो विश्वकर्मा ऋषि कहे जाते हैं उनके बारे में शास्त्रों में प्रमाणिक विवरण है । ये अथर्वावंशी धीष्णु पुत्र सुधन्वा विश्वकर्मा हैं जो अथर्ववेद के प्रकांड विद्वान थे। यह ब्रह्मर्षि अंगिरा कुल के थे जो अथर्ववेद के कर्ता हैं ब्रह्म ऋषि अंगिरा के हृदय में ही अथर्ववेद का ज्ञान प्रकट हुआ था अथर्व वेद को ही ब्रह्मवेद कहते हैं अथर्वर्वेदी ब्राह्मणों को ही यज्ञ में ब्रह्मा अर्थात सर्वोच्च पद का अधिकार है। अथर्ववेद का उपवेद अर्थवेद हैं जिसे शिल्प वेद भी कहते हैं। जिसका प्रमाण शौनकिय चरणव्यूह से सिद्ध हो जाता है जो निम्न है-
स्थापत्य वेदोर्थ शास्त्रं विश्वकर्मादि
शिल्प शास्त्रं अथर्ववेद स्योप्वेद:॥
- (शौनकिय चरणव्यूह परि0 खंड-4)
अर्थात भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित शिल्प शास्त्र (अर्थवेद) ही अथर्ववेद का उपवेद है।
समस्त शिल्पी ब्राह्मण ब्रह्मशिल्प विद्या से निर्माण के साथ-साथ कर्मकांड करते हुए अथर्वर्वेदी विश्वकर्मा ब्राह्मण कहलाते हैं इन्हें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण भी कहा जाता है। इन ब्रह्मशिल्पी ब्राह्मणों के वेद शास्त्रों में अनेकों प्रमाण है। इसी ब्रह्मर्षि अंगिरा के दिव्य कुल में ऋषि सुधन्वा विश्वकर्मा हुए जिनकी उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार हैं।
ब्रह्मा के पुत्र अंगिरा,अंगिरा के पुत्र अथर्वा,अथर्वा पुत्र धिष्णु और धिष्णु के पुत्र महर्षि सुधन्वा हुए। जो विश्वकर्मा की उपाधि से भी सम्मानित हुए ।
इनकी उत्पत्ति विवरण ब्रह्मांड पुराण एवं वायु पुराण में वर्णित है ;
पथ्या च मानवी कन्या तिस्रो भार्या ह्यथर्वणः ।
*अथर्वणस्तु दायादास्तासु जाताः कुलोद्वहाः ॥*२,१.१०३
धृष्णेः पुत्रः सुधन्वा तु ऋषभश्च सुधन्वनः ।
रथकाराः स्मृता देवा ऋभवो ये परिश्रुताः ॥ २,१.१०७ ॥
(ब्रह्माण्डपुराणम्/मध्यभागः/अध्यायः १, श्लोक - १०३-.१०७)
अर्थात - मानवी की पुत्री पथ्या, अथर्व की पत्नी थी। उससे अथर्व के पुत्र उत्पन्न हुए और वे राजवंश के नेता बन गए। धिष्णु के पुत्र सुधन्वा हैं। उन्हें ऋषभ और सुधन्वन के नाम से भी जाना जाता है। उन्हीं सुधन्वा के तीन पुत्र(ऋभु ,विभु एवं वाज) जो रथकार थे उन्हें ऋभव देवताओं के नाम से पुकारा जाता है।
पथ्या च मानवी कन्या तिस्रो भार्यास्त्वथर्वणः।
इत्येताङ्गिरसः पत्न्यस्तासु वक्ष्यामि सन्ततिम् ।। ४.९८ ।।
अथर्वणस्तु दायादास्तासु जाताः कुलोद्वहाः। ४.९९
(वायु पुराण अध्याय ४, श्लोक - ९८ - ९९)
अर्थात - अथर्व की तीन पत्नियाँ थीं जिनका नाम पथ्या और उनकी मानव पुत्री थी। अब मैं अंगिरस (अथर्व) की इन पत्नियों के वंशजों का वर्णन करूंगा। उससे अथर्व के पुत्र उत्पन्न हुए और वे राजवंश के नेता बन गए।
धिष्णुः पुत्राः सुधन्वान ऋषभश्च सुधन्वनः।।*४.१०२
रथकाराः स्मृता देवा ऋषयो ये परिश्रुताः। ४.१०३
- (वायु पुराण अध्याय ४, श्लोक १०२ - १०३)
अर्थात - धिष्णु के पुत्र सुधन्वा हैं। उन्हें ऋषभ और सुधन्वन के नाम से भी जाना जाता है। उन्हीं सुधन्वा के तीन पुत्र(ऋभु ,विभु एवं वाज) जो रथकार थे उन्हें ऋभव देवताओं के नाम से पुकारा जाता है।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा विश्वकर्मा पूजा के दिन, (जिस दिन गोवर्धन भी होता है) भगवान त्वष्टा विश्वकर्मा (आदि ब्रह्मा) तथा महर्षि सुधन्वा विश्वकर्मा की पूजा का विधान है जो ‘विनायक पूजा’ के नाम से भी जानी जाती है।
क्यों मनायी जाती है विनायक पूजा ?
उत्तर-सृष्टि के आदि में जब परमात्मा ने आदिशिल्पाचार्य त्वष्टा विश्वकर्मा को प्रकट किया तब ‘त्वष्टा विश्वकर्मा’ ने सृष्टि को रचा, और ऋषि, महर्षि, मुनियों, मनुष्यों तथा जीवजन्तु, की संरचना की तब उनके खाने का भी प्रबन्ध किया। सर्वप्रथम धान की खेती की गयी। खेती करने में गोधन (बैलों) का उपयोग किया गया था। अतः गोवंश का वर्धन (बढ़ाया) किया गया। इसलिए इस दिन को गोवर्धन के नाम से भी जाना गया। तथा भगवान आदि ब्रह्मा(त्वष्टा विश्वकर्मा) जी का ही मार्गदर्शन था इसलिए त्वष्टा विश्वकर्मा जी की पूजा की गयी (त्वष्टा विश्वकर्मा का उल्लेख) ऋग्वेदादि ग्रन्थों में मिलता है, वही महर्षि सुधन्वा विश्वर्मा का उल्लेख वेद के साथ-साथ ब्रह्माड पुराण और वायु पुराण में भी मिलता है।
दीपावली का त्योहार कब से मनाया गया?
उत्तर-आदिकाल में सर्वप्रथम जब धान की खेती की गयी, इसी धान से चावल बनता है जो लक्ष्मी का प्रतीक है। चावल को सर्वप्रथम खाने हेतु उपयोग में लाया गया तब धान (लक्ष्मी) की पूजा की गयी। अगले दिन गोवंश की पूजा हुई और भगवान त्वष्टा विश्वकर्मा की पूजा हुई उसके पश्चात फसल का दशांश भाग बेटियों को दिया जाने लगा। जिसे आज भैया दूज के नाम से जानते हैं। आज भी दीपावली के दिन धान की ही पूजा की जाती है और धान की फसल भी कटकर किसानांे के घर में आ जाती है।
फिर दीपावली को भगवान राम से क्यों जोड़ा जाता है?
उत्तर-दीपावली के दिन भगवान राम अयोध्या में पहुँचे थे ऐसी लोक कथा प्रचलित है किन्तु भगवान राम चैत्र माह में अयोध्या पहुँचे थे।
आप स्वयं श्री रामचरित मानस के किष्किन्धा काण्ड की यह चौपाई देखिये-
बालि वध के पश्चात श्री राम सुग्रीव से कह रहे हैं।
कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा।
पुर न जाउँ दस चारि बरीसा।।
गत ग्रीषम बरषा रितु आई।
रहिहउँ निकट सैल पर छाई।।(चो0)
प्रभुने कहा-हे वानरपति सुग्रीव! सुनो, मैं चौदह वर्ष तक गाँव (बस्ती) में नहीं जाऊँगा । ग्रीष्म ऋतु बीतकर वर्षा ऋतु आ गयी। अतः मैं यहाँ पास ही पर्वत पर टिक रहूँगा ।। ४।।
अंगद सहित करहु तुम्ह राजू।
संतत हृदयँ धरेहु मम काजू।।
जब सुग्रीव भवन फिरि आए।
रामु प्रबरषन गिरि पर छाए।(चो0)
तुम अंगद सहित राज्य करो। मेरे काम का हृदय में सदा ध्यान रखना। तदनन्तर जब सुग्रीवजी घर लौट आये, तब श्रीरामजी प्रवर्षण पर्वत पर जा टिके ।।५।।
अर्थात श्री राम जी ने सुग्रीव को राजतिलक के पश्चात पर्वत की एक कन्दरा में ग्रीष्म )तु के पश्चात वर्षा ऋतु में रुके रहे। आज हिन्दू पंचाग के अनुसार ग्रीष्म ऋतु के माह फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ ये चार माह हैं।
वर्षा ऋतु के माह-आषाढ़, श्राावण, भाद्रपद और आश्विन होते हैं। वर्षा ऋतु पुरी बीत जाने के बाद कार्तिक के 15 दिन बीतने पर श्री रामजी ने लक्ष्मण को सुग्रीव के पास अपनी प्रतिज्ञा स्मरण कराने हेतु भेजा था।
बरषा गत निर्मल रितु आई।
सुधि न तात सीता कै पाई।।
एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं।
कालहु जीति निमिष महुँ आनौं। (चोपाई)
वर्षा बीत गयी, निर्मल शरद ऋतु आ गयी। परन्तु हे तात! सीताकी कोई खबर नहीं मिली। एक बार कैसे भी पता पाऊँ तो काल को भी जीतकर पलभरमें जानकी को ले आऊँ ।।१।।
कहहु पाख महुँ आव न जोई।
मोरें कर ता कर बध होई।।
तब हनुमंत बोलाए दूता।
सब कर करि सनमान बहूता।। (चो0)
और कहला दो कि एक पखवाड़े में (पंद्रह दिनोंमें) जो न आ जायगा, उसका मेरे हाथों वध होगा। तब हनुमानजीने दूतोंको बुलाया और सबका बहुत सम्मान करके ।। ३।।
जनकसुता कहुँ खोजहु जाई।
मास दिवस महँ आएहु भाई।।
अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ।
आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ ।। (चो0)
और जाकर जानकी जी को खोजो हे भाई! महीने भर में वापस आ जाना। जो (महीने भर की) अवधि बिताकर बिना पता लगाये ही लौट आवेगा उसे मेरे द्वारा मरवाते ही बनेगा (अर्थात् मुझे उसका वध करवाना ही पड़ेगा)।। ४।। (किष्किन्धा काण्ड पृष्ठ-६८७)
सारांश-श्री रामचरित मानस के अनुसार वर्षा ऋतु के पश्चात शीत ऋतु के 15 दिन बीत जाने पर माँ सीता की खोज के लिए राजा सुग्रीव ने वानरों को चारों दिशाओं में भेजा था और एक माह का समय दिया था। शीत ऋतु कार्तिक माह से प्रारम्भ होती है, अर्थात कार्तिक माह के बाद मार्गशीर्ष माह के 15 दिन (दीपावली के 15 दिन बाद)बीत जाने पर युवराज अंगद की अगुवाई में हनुमान जी माता सीता जी की खोज कर श्री राम जी तक पहुँचे थे। जबकि दशहरा आश्विन माह की शुक्लपक्ष की दशमी को होता है और दीपावली कार्तिक माह की अमावस्या को होती है। अतः दीपावली और दशहरा का सम्बन्ध संशय उत्पन्न करता है।
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण जी का विशेष महत्व है और भगवान विश्वकर्मा का भी विशेष महत्व है शास्त्रों में कहा गया है विष्णु और विश्वकर्मा में कोई भेद नहीं है। सर्वप्रथम विश्वकर्मा वह परमात्मा है जिन्हें वेद शास्त्रों एवं समस्त पुराणों में विश्वकर्मा की सर्वोच्च उपाधि प्राप्त है।
(कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा विश्वकर्मा पूजा (विनायक पूजा) भैया दूज पर सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं) -संपादक
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