महाशिवरात्रि स्पेशल
शिवरात्रि नहीं ऋषि बोध रात्रि
कतिपय आर्यजन भी फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी के दिन महर्षि दयानन्द बोध पर्व की पर्वता को सावधान चित्त से न विचारने के कारण अवैदिक शिवरात्रि की भी शुभकामनाओं का आदान-प्रदान कर रहे हैं। इस दिन मूलशंकर ने ईश्वर दर्शन की उत्कट अभिलाषा से अपने पिता जी की प्रेरणा से शिवरात्रि का उपवास करने व रात्रि जागरण करने का निश्चय किया था। इस निश्चय के अनुसार जब रात्रि में उन्होंने अपने शिवरात्रि के व्रत के अनुष्ठान में चूहों द्वारा शिवपिण्डी पर मल-मूत्र करते हुए देखा तब उनके मन में शंकाओं का आघात-प्रतिघात होने लगा ।उन शंकाओं का समाधान जब उनके पिता न दे सके,तब अन्तर्ध्यान होने पर मूलशंकर को वह पिण्डी शिव अर्थात् सर्वशक्तिमान् ईश्वर नहीं है इसका निश्चय हो गया और इतना ही नहीं अपितु ईश्वर-दर्शन के लिये उनके जिस योग युक्त जीवन का निर्माण पिछले जीवनों में होकर आया था, उस पर जो विस्मरण का आवरण आ गया था वह आवरण भी अन्तर्ध्यान होते ही हट गया। ईश्वर प्राप्ति का लक्ष्य अब ईश्वर कृपा से उनकी विचारधारा के सम्मुख भासने लगा तथा यह शिवरात्रि का मिथ्या अनुष्ठान ईश्वर प्राप्ति के कार्य में व्यर्थ है इसका भी बोध हो गया।
जो उपवास और रात्रि जागरण पहले बड़ी आस्था से ग्रहण किये गये थे, अब उनमें कोई सार प्रतीत न होने के कारण उन्हें छोड़ने में श्रद्धालु बालक ने कुछ भी विलम्ब न किया क्योंकि अब इस उपवास व जागरण से कोई प्रयोजन सिद्ध होने वाला नहीं था। इसलिये अब शिवरात्रि के वृथा अनुष्ठान को छोड़कर मन्दिर से घर आकर पहले भोजन किया तत्पश्चात् सो गये। ऋषि को तो शिवरात्रि की असारता का बोध हो गया था, हमें भी होना ही चाहिये? हमें इस शिवरात्रि के मिथ्यापन की बधाई व शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करना बन्द करके वैदिक ईश्वरोपासना को ग्रहण करते हुए ऋषि बोध पर्व की शुभकामनायें देनी चाहियें।
ऋषि बोध पर्व के इस अवसर पर हम किसी अन्य विशेष घटना से नहीं अपितु बोध की ही इस विचित्र घटना से बोध प्राप्त करना चाहते हैं। ऐसा करके हम ऋषिवर दयानन्द सरस्वती के अनुगामी बनकर अभ्युदय व मोक्ष प्राप्त करने के अधिकारी बन सकते हैं।
स्वरचित
- विष्णुमित्र वेदार्थी ९४१२११७९६
comimg soon...
सभी सुधि पाठकों को महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-सम्पादक