ईश्वर प्रदत्त पुरस्कार सर्वोत्तम
एक बहुत अरबपति महिला ने एक गरीब चित्रकार से अपना चित्र बनवाया,पोट्रट बनवाया। चित्र बन गया,तो वह अमीर महिला अपना चित्र लेने आयी। वह बहुत खुश थी। चित्रकार से उसने कहा- कि उसका पुरस्कार क्या दूं ?
चित्रकार गरीब आदमी था। गरीब आदमी लोभ भी करे तो कितना बडा़ करे,मांगे भी तो कितना मांगे? हमारी मांग, सब गरीब आदमी की मांग है परमात्मा से। हम जो मांग रहे हैं, वह क्षुद्र है। जिससे मांग रहे हैं, उससे यह बात मांगनी नहीं चाहिए। तो उसने सोचा मन में कि सौ डालर मांगूं,दो सौ डालर मांगूं, पांच सौ डालर मांगूं। फिर उसकी हिम्मत डिगने लगी। इतना देगी,नहीं देगी! फिर उसने सोचा कि बेहतर यह हो कि इसी पर छोड़ दूं,शायद ज्यादा दे दे। डर तो लगा मन में कि इस पर छोड़ दूं,पता नहीं दे या न दे,या कहीं कम दे और एक दफा छोड़ दिया तो फिर! तो उसने फिर भी हिम्मत की। उसने कहा कि आपकी जो मर्जी। महिला के हाथ में जो बैग था,पर्स था, उसने कहा,तो अच्छा! यह पर्स तुम रख लो। यह बडा कीमती पर्स है।
पर्स तो कीमती था,लेकिन चित्रकार की छाती बैठ गयी कि पर्स को रखकर करूंगा भी क्या? माना कि कीमती है और सुंदर है,पर इससे कुछ आता-जाता नहीं। इससे तो बेहतर था कुछ सौ डालर ही मांग लेते। तो उसने कहा,नहीं-नहीं,मैं पर्स का क्या करूंगा,आप कोई सौ डालर दे दें। उस महिला ने कहा,तुम्हारी मर्जी। उसने पर्स खोला, उसमें एक लाख डालर थे,उसने सौ डालर निकाल कर चित्रकार को दे दिये और पर्स लेकर वह चली गयी। सुना है कि चित्रकार अब तक छाती पीट रहा है और रो रहा है–मर गये,मारे गये,अपने से ही मारे गये!
आज का आदमी करीब-करीब इसी हालत में है। परमात्मा ने जो दिया है,वह बंद है,छिपा है। और हम मांगे जा रहे हैं–दो-दो पैसे,दो-दो कौड़ी की बात। और वह जीवन की जो संपदा उसने हमें दी है,उस पर्स को हमने खोल कर भी नहीं देखा है। जो मिला है,वह जो आप मांग सकते हैं,उससे अनंत गुना ज्यादा है। लेकिन मांग से फुरसत हो,तो दिखायी पड़े,वह जो हमें मिला है।
भगवान के दिये उपहार हैं जो हमें दिखाई नहीं पड़ते।
सचमुच,गहराई से सोचा जाए तो हमारी ये देखने…सुनने…सोचने…समझने…जैसी शक्तियां किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं,ऐसे में ये सोच कर दुखी होने ने कि बजाये कि हमारे पास क्या नहीं है हमें ईश्वर के दिए इन अनमोल तोहफों के लिए शुक्रगुजार होना चाहिए और जीवन की छोटी-छोटी बातों में छिपी खुशियों को मिस नहीं करना चाहिए..!!