।।ॐ नमो विश्वकर्मणे।।
न भूमि न जलं चैव न तेजो न च वायव: ।
न चाकाश न चितं च न बुध्दया घ्राण गोचरा ।।
न ब्रह्मा नैव विष्णुश्च न रूद्रो न च देवता ।
एक एक भवे द्विश्वकर्मा विश्वाभि देवता ।। "
- ( विश्वब्रह्म पुराण अध्याय - 2)
अर्थ - न पृथ्वी थी , न जल था , न अग्नि थी , न वायु थी, न आकाश था , न मन था , न बुद्धि थी और न घ्राण आदि इंद्रियां थी। न ब्रह्मा थे , न विष्णु थे , न ही शिव थे तथा अन्य कोई देवता भी नहीँ था, उस सर्व शून्य प्रलय में समस्त ब्रह्मांड को अपने में ही आवृत अर्थात समाये हुये सबका पूज्य केवल एक ही निराकार विश्वकर्मा परमेश्वर परब्रह्म विद्यमान थे ।
"अ॒द्भ्यः सम्भू॑तः पृथि॒व्यै रसा॓च्च । वि॒श्वक॑र्मणः॒ सम॑वर्त॒ताधि॑ ।
तस्य॒ त्वष्टा॑ वि॒दध॑द्रू॒पमे॑ति । तत्पुरु॑षस्य॒ विश्व॒माजा॑न॒मग्रे॓ ॥"
- (यजुर्वेद अध्याय - 31, मंत्र - 17)
अर्थ - सृष्टि के प्रारंभ में सूर्य, जल और पृथ्वी का निर्माण करके विराट पुरुष परब्रह्म विश्वकर्मा ने स्वयं को साकार रूप में प्रकट किया । फिर विराट विश्वकर्मा ने स्वयं से त्वष्टा अर्थात ब्रह्मा को उत्पन्न किया। सम्पूर्ण ब्रह्मांड के अस्तित्व के पूर्व सब कुछ उन्हीं विराट विश्वकर्मा में समाहित था और समस्त सृष्टि उन्ही का रुप थी।
(अथर्ववेद कांड १० सूक्त ७ मन्त्र १४) स्वतः यह प्रमाणित करता है कि अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा । ये चार ऋषि सृष्टि में सर्वप्रथम उत्पन्न हुए। परमात्मा द्वारा इन्ही के हृदयों में क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद का प्रकाश हुआ। इन चारों ऋषियों ने ही ब्रह्मा को वेद ज्ञान दिया इसीलिए यह ब्रह्मऋषि कहलाये।
(दुर्भाग्य से हम लोग केवल 17 सितम्बर ही याद रख पाए अन्य अपने पर्वो को महत्व नही दे पाए। भाद्रपद मास में प्रति वर्ष प्रतिपदा तिथि को अष्टम वसु प्रभास पुत्र विश्वकर्मा का अवतरण/जन्म होना महाभारत ग्रँथ कहता है। जिसका उल्लेख लगभग सभी लेखकों ने अपने-अपने ग्रन्थों में किया है। किंतु उनका जन्म दिवस का उल्लेख करना भूल गए। अर्थात प्रचार नही कर पाए। अथवा हम अध्ययन नही कर पाए । वहीं भाद्रपद शुक्ल पंचमी जिसे ऋषि पंचमी भी कहा जाता है केसी विडम्बना है हम लोग इस तिथि को भी अपने पर्व रूप में नही मना सके। संयोग से इस माह विश्वकर्मा पूजा दिवस 17 सितम्बर भी भाद्रपद माह में ही है। 17 सितम्बर से भी पहले 15 सितम्बर जिसे हम लोग इंजीनियर डे के नाम से जानते हैं यह दिवस महान विश्वकर्मा वंश में जन्मे महान इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस वर्ष कन्या सक्रांति 16 सितम्बर को ही पड़ रही है। हमारा उद्देश्य केवल आपको अपने पर्वो से अवगत कराना है न कि किसी की अवहेलना करना है। धन्यवाद -केदारनाथ धीमान 9411538663, 9536538663)
विश्वकर्मा परब्रह्म जगधारमूलक: ।
तन्मुखानी तुवै पंच पंच ब्रह्मेत्युदाह्तम।।
इन्ही पंच ऋषियों के वंशज विश्वकर्मा वंशी पंचब्रह्मा अर्थात पांच ब्राह्मण माने गए है।)
भुवन पुत्र विश्वकर्मा
भगवान विश्वकर्मा पूजा दिवस १७ सितम्बर 2024 को मनाई जाएगी।
(सन्दर्भ ग्रन्थ "महृषि विश्वकर्मा")
ऋषि पंचमी 2024:
हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें से एक है ऋषि पंचमी। यह व्रत न सिर्फ शुभता और सौभाग्य का प्रतीक है, बल्कि महिलाओं के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी बहुत महत्व रखता है।
विश्वकर्मा पूजा के पीछे क्या कहानी है?
प्रलय के पश्चात परमेश्वर शीत में ही सृष्टि की फिर से रचना करता है और वह ऋतु शरद ऋतु कहलाती है। सूर्य का प्रकाश होने से जगत में गर्मी उत्पन्न होती है, उसे ग्रीष्म ऋतु कहते है। उस ग्रीष्मऋतु से जल की भाप से (ज्वार भाटा बनकर) वर्षा होकर वर्षा ऋतु कहलाती है। यह क्रम सदा से चल रहा है, व सदा चलता रहेगा। वेद मंत्रों के आधार पर अन्य संक्रान्तियों की अपेक्षा कन्या की संक्रान्ति को श्रेष्ठ माना है।
विश्वकर्मा पूजा का रहस्य क्या है?
सृष्टियारम्भ नववर्ष का स्वागत करते हुए शिल्प के प्रवत्र्तक आदि विश्वकर्मा जी का आह्वान् पूजन दिवस के रुप में ‘17 सितम्बर’ (कन्या संक्रान्ति) को प्राचीन काल से मनाते चले आ रहें हैं। इस प्रकार ‘कन्या संक्रांति’ ‘सृष्टि सृजन दिवस' के रुप में भी मनाना उचित ही होगा।
विश्वकर्मा जयन्ती नहीं, विश्वकर्मा पूजन दिवस अथवा सृष्टि सृजन दिवस मनाया जाए
दुःख का विषय है कि बहुत से लोगों तथा संस्थाओं द्वारा ‘१७ सितम्बर’ को ‘विश्वकर्मा पूजन दिवस’ के स्थान पर विश्वकर्मा जयन्ती लिख दिया जाता है। जो एक अज्ञानता का ही परिचायक है।
कन्या की संक्रान्ति शिल्प के प्रवत्र्तक आदि विश्वकर्मा जी का केवल और केवल ‘विश्वकर्मा पूजा दिवस’ है, ‘सृष्टि सृजन दिवस’ है। इसी दिन सर्वप्रथम देवताओं ने विश्वकर्मा जी की पूजा की थी।
विश्वकर्मा दिवस क्यों मनाया जाता है?
क्या है 17 सितम्बर?
मूल रूप कन्या सक्रांति ही है जो आदि काल से है 17 सितम्बर बहुत बाद में प्रचलित हुआ। इस आधार पर हम यह प्रमाणिकता से कह सकते हैं कि ‘कन्या संक्रान्ति’ आदि काल से ही विश्वकर्मा पूजन दिवस रहा है। कुछ लोग जो यह कहते हैं कि हावड़ा ब्रिज के बनने पर सर्वप्रथम अंगेजों ने विश्वकर्मा पूजा की थी, यह प्रमाणिक नहीं हो सकती। हां यह अवश्य माना जा सकता है कि कन्या संक्रान्ति को ही अंग्रेजों ने विश्वकर्मा पूजा की हो, और १७ सितम्बर नाम दिया गया हो। क्योंकि ‘कन्या संक्रान्ति’ १७ सितम्बर के आसपास ही प्रतिवर्ष पड़ती है। इस प्रकार ‘कन्या संक्रान्ति’ को ‘१७ सितम्बर’ ‘विश्वकर्मा पूजन दिवस’ प्रतिवर्ष सभी शिल्पियों तथा सभी तकनिकी संस्थानों व तकनिकी लोगों, इंजीनियरों, कारखानों आदि में प्रतिवर्ष महा पूजा का आयोजन होता है। यह पूजा पहले बिहार, पश्चिम बंगाल, आसाम और उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों में मनायी जाती रही है। जबकि आज पूरे देश विदेश में मनायी जाने लगी है।