विश्वकर्मा वैदिक पत्रिका प्रयास एक नज़र में
मुख्य उद्देश्य
1- समाज को साहित्य का दिग्दर्शन कराना।
2-समाज में फैली कुरीतियों को दूर कर सही जानकारी उपलब्ध कराना।
3-अपने समाज के महापुरुषों की जयंती/पुण्यतिथि तिथि(प्रमाणिक) से अवगत कराना
4-वैदिक और पौराणिक साहित्य का बोध कराते हुए समाज को सही प्रमाणिक साहित्य उपलब्ध/दर्शन कराना।
5-देश भर के विद्वान कवियों/कवयित्रियों, लेखक/लेखिकाओं से अवगत कराना और उनका साहित्य जन-जन तक पहुँचाना।
6-समाज की छिपी प्रतिभाओं को पत्रिका के माध्यम से देश/समाज के समक्ष लाना।
7-समाज के विकास के लिए हर सम्भव कोशिश करना, अज्ञानता दूर करना, जिससे समाज का शेक्षिक, बौद्धिक, राजनीतिक, विकास हो।
विश्वकर्मा वैदिक पत्रिका का प्रयास-
1- 2013 से पत्रिका द्वारा प्रमाणिक साहित्य का बोध और प्रचार प्रसार।
2- वर्ष 2013 से ही "17 सितम्बर विश्वकर्मा पूजा दिवस है जयंती नही" का भरपूर प्रसार किया। जिसमे आज हम 90% सफल भी हुए। केवल 10 प्रतिशत लोग ही रह गए को आज भी विश्वकर्मा पूजन दिवस न मना कर विश्वकर्मा जयंती मनाते आ रहे हैं।
3- केवल 17 सितम्बर ही हमारे समाज का प्रमुख उत्सव नही वरन् और भी बहुत से उत्सव समाज में हैं इसकी जानकारी भी पत्रिका के माध्यम से उपलब्ध कराने का प्रयास जारी है। जैसे-चैत्र शुक्ल प्रतिपदा(ब्रह्मकुलोतपन्न विश्वकर्मा जयंती, बैशाख शुक्ल द्वितिया(विश्वरूप विश्वकर्मा जयंती), सरदार जस्सा सिंह रामगढिया जयंती, बैशाख शुक्ल पंचमी(आदि गुरु शंकराचार्य जयंती), भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा(प्रभासपुत्र विश्वकर्मा जयंती), भाद्रपद शुक्ल पंचमी(ब्रह्मर्षि अंगिरा प्रकटोत्सव), माघ शुक्ल त्रयोदशी, कन्या सक्रांति विश्वकर्मा पूजा), कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा(आदि ब्रह्मा त्वष्टा विश्वकर्मा और सुधन्वा विश्वकर्मा पूजा), कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा(आचार्य विश्वकर्मा जयंती), मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा (विश्वकर्मा भौवन प्रकाट्य दिवस)मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा(कश्यप विश्वकर्मा जयंती) आदि भी लालो समेत अनेक महापुरुषों की जयंती।
4- सर्वप्रथम 2015 में आद्य गुरु शंकराचार्य जयंती मना कर समाज को अवगत कराया।
5-माघ शुक्ल त्रयोदशी को भी कार्यक्रम प्रारम्भ किया।
6- हरिद्वार में ही 11 सितम्बर 2021 में ब्रह्मर्षि अंगिरा प्राकट्य दिवस मनाकर समाज में सन्देश देने का प्रयास किया कि हमारा समाज केवल विश्वकर्मा पूजा 17 सितम्बर तक ही सीमित नहीं है अपितु अनेक भगवान, महर्षि, महापुरुषों ने जन्म लिया है।
7- महासभा के सहयोग से ही धीमान ब्राह्मण पुरस्कारों से समाज की प्रतिष्ठित हस्तियों तथा लेखक/लेखिकाओं को पुरस्कृत कर एक नई परम्परा का आगाज किया।
8-समाज के अनेक लेखकों/लेखिकाओं कवियों/कवयित्रियों से समाज के बीच परिचय कराने का प्रयास किया।
9-पत्रिका में स्थाई कॉलम जैसे स्वर्ण जाती रत्न, लेखक/लेखिकाओं का जीवन परिचय, संतों का जीवन परिचय और विभिन्न विश्वकर्मा मन्दिरों का परिचय।
10- समाज का वैदिक साहित्य की ओर ध्यान आकर्षित करना।
11- वैवाहिक कॉलम का निशुल्क प्रकाशन आदि
समाज में फैली उदासीनता समाज के लिए ज्यादा भयावह
1- आज चिंता का विषय है कि आज समाज में घोर निराशा, और उदासीनता फैल रही है।
2- देशभर में फैले अधिकतर समाज में अपने साहित्य का ज्ञान न होना ज्यादा भयावह है। आगामी पीढ़ी तो बिल्कुल अनभिज्ञ है।
3- समाज साहित्य के प्रति जागरूक नहीं नज़र आता। आधे अधूरे ज्ञान से समाज के कर्णधार समाज को गलत दिशा ही देते हैं। अतः समाज की संस्थाओं के पदाधिकारियों ले लिए आवश्यक है वे लोग स्वयं साहित्य का दर्शन करें और संस्थाओं के माध्यम से अधिक से अधिक सामान्य लोगों तक साहित्य की व्यवस्था करें, प्रचार प्रसार करें।
4- सामाजिक पत्र पत्रिकाएं समाज का दर्पण होती हैं, पत्रिकाओं के माध्यम से सहज ही साहित्य घर-घर पहुँच सकता है।
5- सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक संगठनों से विनम्र आग्रह है की वे कम से कम अपने संगठन के माध्यम से सामाजिक साहित्य, पत्र पत्रिकाओं का प्रसार कर घर-घर पहुँचाने का प्रयास करें।
6-सामाजिक पत्र/पत्रिकाओं का आर्थिक सहयोग आवश्यक है अतः प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होना चाहिये की वह सामाजिक पत्र/पत्रिकाओं के सदस्य बने और दूसरों को सदस्य बनने के लिए प्रेरित भी करें, और समय से सदस्यता शुल्क जमा भी करें। तभी पत्र/पत्रिकाओं का निरन्तर प्रकाशन सम्भव हो सकता है।
समाज में पत्र/पत्रिकाओं की भूमिका-
1- सामाजिक में जितनी आवश्यक शिक्षा होती है उतनी ही आवश्यक पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका होती है।
2- समाज का दर्पण कोई है तो वो सामाजिक पत्र पत्रिकाएँ ही होती है।
3-जिस समाज का पतन करना हो उस समाज का जातीय साहित्य लुप्त करदो समाज का पतन शीघ्र हो जायेगा।
4-सामाजिक पत्रिकाएं अति शीघ्र साहित्य समाज के बीच ले जाती हैं।
5-पत्रिकायें समाचार पत्र से ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं पत्र केवल एक दिन या साप्ताहिक होते हैं किंतु पत्रिकाएं मासिक त्रेमासिक, अर्धमासिक, वार्षिक होने से ज्यादा समय आपके रहती हैं।
आज आवश्यकता है समाज जागरूक करिये और पत्रिकाओं का सहयोग करिये।