माघ शुक्ल त्रयोदशी
विश्वकर्मा प्रकटदिवस
(माघ शुक्ल त्रयोदशी पर विशेष )
जिस प्रकार चैत्र शुक्ल नवमी मर्यादा पुरूषोत्तम राम की, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी भगवान् कृष्ण की जन्म तिथि हैं उसी प्रकार माघ शुक्ल त्रयोदशी निर्माण के देवता विज्ञान सम्राट् विश्वकर्मा का अवतरण दिवस है।
भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व ३ अध्याय ९ में एक हेली नामक विश्वकर्मा उपासक की कथा आती है, उसमें विश्वकर्मा का अवतरण स्पष्टतया माघ मास में होना लिखा है।
पुरा पम्पापुरे रम्ये हेली नाम्ना द्विजोऽभवत् । चतुःपष्टिकलाभिज्ञो त्वष्टुः पूजनतत्परः ।।१।। तद्धनेन रविं देवं यज्ञेमधे हि सोऽर्चयेत् । विश्वकर्मा रविः साक्षात् माघमासे प्रकाशकः ।।४।।
पूर्वकाल में अति शोभायमान पम्पापुर में विश्वकर्मा का उपासक हेली नाम का ब्राह्मण रहता था।
विश्वकर्मा भक्त हेली ने दया और शिल्प को अपनी वृत्ति के लिए अपना लिया और एक वस्त्र बुनने की और एक चित्र बनाने की मशीन बनाई।
इस प्रकार से हेली प्रति मास एक मशीन बनाकर उसके धन से अपने इष्ट् विश्वकर्मा देव की यज्ञादि के द्वारा पूजा अर्चना करने लगा। हेली के इन यज्ञों से अति प्रसन्न हो माघ मास में साक्षात् विश्वकर्मा जी प्रगट हुये।
इससे शिल्पाचार्य विश्वकर्मा का माघ मास में अवतरण सिद्ध होता है।
विश्वेश्वराज्ञया त्वाष्ट्रो लोकानां हितकाम्यया। माघमासे सिते पक्षे त्रयोदश्यां शुभे दिने ।। प्राप्तवानिन्द्रकीलं वै नगराजं महादूभुतम् । इन्द्रकीलेन्द्रराजासी सर्व-देव- समन्वितः । । १ । ।
अर्थात् काशी विश्वेश्वर की आज्ञा से लोक-कल्याण के लिए माघ मास शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को विश्वकर्मा जी परम् आश्चर्यजनक पर्वतों के राजा इन्द्रकील पर्वत पर सब देवों में शोभायमान हुए।
स्कन्द पुराण के अनुसार माघ शुक्ल त्रयोदशी विश्वकर्मा की अवतरण तिथि प्रमाणित हो जाती है।
इन सबसे सबल और विश्वकर्मा की अवतरण तिथि का स्पष्ट उल्लेख करने वाला प्रमाण, जिसे बड़े-बड़े ज्योतिषाचार्यों ने स्वीकार किया है, मदनरले वृद्ध वशिष्ठ
पुराण में इस प्रकार मिलता है-
माघे शुक्ल पक्षे त्रयोदश्यां दिवा पुण्यो पुनर्वसुः । अष्टाविंशति में जायतो विश्वकर्मा भवानि च ।।
अर्थात् शिवजी बोले कि हे पार्वती! माघ मास के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र के अठ्ठाईसवें अंश में विश्वकर्मा जी ने मेरे रूप में अवतार धारण किया है। इस प्रमाण में न केवल मास व तिथि का उल्लेख है अपितु नक्षत्र और उसके अंश की भी जानकारी दी गई है। पं शंकर शास्त्री होसरिति कृत पंचांग
ज्योतिषर्मार्तण्ड दैवज्ञ मुकुटालंकार (Kaisar-i- hind) श्री पं. शंकर शास्त्री होसरिति ने अपने पंचांग शाके १८६५ सुभानु नाम संवत्सरे सन् ४३, ४४ में सत्युग से लेकर कलियुग तक अधिकांश महापुरूषों की जन्म तिथियां बताई हैं। उसमें विश्वकर्मा की अवतरण तिथि माघ शुक्ल त्रयोदशी रविवार स्पष्ट दी है।
लोकाचार
भारत भर में सर्वाधिक स्थानों पर माघ शुक्ल त्रयोदशी को ही विश्वकर्मा का प्रकटदिवस मनाया जाता है। विश्वकर्मा मन्दिर रूनिजा तथा विश्वकर्मा मन्दिर ऐलोरा में सैकड़ों वर्ष से इसी दिन विश्वकर्मा का प्रकट दिवस मनाया जाता है।
इस पुनीत पर्व पर महर्षि विश्वकर्मा जयन्ती के पवित्र शुभ अवसर पर धार्मिक कृत्य यज्ञ, हवन इत्यादि करके महर्षि विश्वकर्माजी का जीवन चरित्र, विश्वकर्मा सूक्त तथा विश्वकर्मा और उनके पुत्रों द्वारा रचित विश्वकर्मा संहिता, विश्वकर्मा शिल्प शास्त्र, विश्वकर्मा वास्तु शास्त्र, विश्वकर्मा तन्त्र, विश्वकर्मा अवतार ज्ञान प्रकाश, विश्वकर्मा सिद्धान्त शास्त्र, शिल्प विज्ञान, शिल्प साहित्य, विश्वकर्मा प्रकाश आदि-आदि एक व दो ग्रन्थ अवश्य पढ़ना-पढ़ाना सुनना सुनाना चाहिए।
( साभार स्कन्द पुराण काशी खण्ड उत्तरार्ध ४ अध्याय ८६ का १०७ वा श्लोक व गुरुदेव जयकृष्ण मणीठिया ने विश्वकर्मा महापुराण के पांचवें अध्याय में स्कन्द पुराण काशी खण्ड उत्तरार्ध ४ अध्याय ८६ का ७८ श्लोक उद्धृत किये है, उनमें यह भी एक है।)
क्या है? माघ शुक्ल त्रयोदशी
माघ शुक्त त्रयोदशी ही अकेले ऐसी तिथि नहीं है। जिससे केवल इसी तिथि को ही भगवान विश्वकर्मा का जन्मदिवस माना जा सकें।
सर्वप्रथम परमात्मा विश्वकर्मा जिसका निज नाम ओ३म् है उसका कोई भी जन्मदिवस हो ही नहीं सकता। वह अजर अमर अविनाशी है।
परमात्मा के बाद नाम आता है त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात आदि ब्रह्मा का इनका अवतरण भी अमैथुनी सृष्टि में हुआ है, अर्थात त्वष्टा विश्वकर्मा का भी जन्मदिवस नहीं है। हाँ त्वष्टा विश्वकर्मा आदि शिल्पी (आदि ब्रह्मा) का पूजन दिवस कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को होता है। इनका विवरण ऋग्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थों में मिलता है।
अब नम्बर आता है विज्ञान सम्राट आदि शिल्पी भगवान विश्वकर्मा भौवन जो कि 31 वेद मन्त्रों के मन्दृष्टा और ऋषि हैं ( मन्त्रदृष्टा और ऋषि होने का गौरव एकमात्र विश्वकर्मा भौवन को ही प्राप्त है, यह गौरव अन्य किसी ऋषि को प्राप्त नहीं है।) सुप्रसिद्ध पुस्तक महर्षि विश्वकर्मा के अनुसार विश्वकर्मा भौवन का अवतरण 'मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा' को हुआ है। जिसका विवरण ऋग्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थों में मिलता है। इनके बाद महर्षि सुधन्वा जिनका पूजन दिवस भी 'कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा' को ही है। इसी प्रकार अष्टम्वसु प्रभास पुत्र विश्वकर्मा (अंगिरस विश्वकर्मा) का अवतरण भी महाभारत अनुसार 'भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा को हुआ है। तथा भृगुवंशी शुक्राचार्य पुत्र त्वष्टा के दो पुत्र विश्वरूप
और विश्वकर्मा का उल्लेख है। त्वष्टा रचित भृगु
संहिता और भृगु मत अनुसार इनका जन्म 'बैशाख शुक्ल द्वितीया को हुआ लिखा है।
आइये देखें निम्न ग्रन्थों के अनुसार किस
विश्वकर्मा का जन्म लिखा है-
वायु पुराण अनुसार 'कार्तिक शुक्ल पुर्णिमा' को आचार्य विश्वकर्मा का जन्म लिखा
है।
सकलाधिकार ग्रन्थ में जगद्गुरू विश्वकर्मा का जन्म 'फाल्गुन मास की पूर्णिमा' को हुआ लिखा है।
वृहद् वशिष्ठ ग्रन्थ अनुसार प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म 'माघ शुक्ल त्रयोदशी' को हुआ है। अब प्रश्न यह है? कि 'प्रजापति विश्वकर्मा' किस विश्वकर्मा को लिखा गया है। लेखकों ने यह ज्वलन्त प्रश्न खड़ा कर दिया है, कि वस्तुतः सच क्या है, इस पर एक राय आवश्यक है।
इसी प्रकार मूलस्तम्भ पुराण में मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को 'कश्यप विश्वकर्मा' का जन्म लिखा है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को 'ब्रह्म कुलोत्पन्न विश्वकर्मा' का उल्लेख लिखा मिल रहा है।
अतः पाठक गण भी स्वयं विचार अवश्य करें, कि माघ शुक्ल त्रयोदशी को आखिर हम किस विश्वकर्मा का अवतरण दिवस मना रहे हैं। -केदारनाथ धीमान